सैन्य बलों के लिए ‘व्यभिचार’ अपराध ही रहे, केंद्र की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का नोटिस

सुप्रीम कोर्ट
– फोटो : सोशल मीडिया
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पीठ ने इसके साथ ही स्थिति स्पष्ट करने के बारे में पांच सदस्यीय संविधान पीठ गठित करने के लिए यह मामला प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे के पास भेज दिया। व्यभिचार के मुद्दे पर साल 2018 में तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने अपने फैसले में इससे संबंधित भारतीय दंड संहिता के प्रावधान को असंवैधानिक घोषित कर दिया था।
संविधान पीठ ने कहा था कि यह प्रावधान महिलाओं की व्यैक्तिक स्थिति पर चोट पहुंचाता है क्योंकि यह उन्हें ‘पतियों की जागीर’ के रूप में मानता है। हालांकि, न्यायालय ने स्पष्ट किया था कि वैवाहिक विवादों में तलाक के लिए व्यभिचार एक आधार बना रहेगा। केंद्र ने जोसेफ शाइन की निस्तारित की जा चुकी याचिका में दायर अपने अंतरिम आवेदन में न्यायालय से स्पष्टीकरण देने का अनुरोध किया है।
केंद्र ने यह निर्देश देने का अनुरोध किया है कि यह फैसला सशस्त्र बलों को शासित करने वाले विशेष कानूनों और नियमों पर लागू नहीं होगा। सशस्त्र बलों में अनुशासन सुनिश्चित करने के लिए कार्मिकों के विवाहेत्तर संबंधों में शामिल होने पर कार्रवाई की जाती है। जब जवान और अधिकारी अग्रिम निर्जन इलाकों में तैनात होते हैं तो उनके परिवारों की देखभाल बेस शिविर में दूसरे अधिकारी करते हैं।
आवेदन में कहा गया है कि इन कानूनों और नियमों में अनुशासन बनाए रखने के लिये इस तरह की गतिविधि में संलिप्त होने पर कार्रवाई का प्रावधान है। इसमें कहा गया है कि सशस्त्र बल में कार्यरत कार्मिकों को अपने सहयोगी की पत्नी के साथ विवाहेत्तर संबंधों में संलिप्त होने पर असह्य आचरण के आधार पर सेवा से बर्खास्त किया जा सकता है।
भारतीय दंड संहिता की धारा 497 के अनुसार, ‘यदि कोई पुरुष यह जानते हुए भी कि महिला किसी अन्य व्यक्ति की पत्नी है और उस व्यक्ति की सहमति या मिलीभगत के बगैर ही महिला के साथ यौनाचार करता है तो वह परस्त्रीगमन के अपराध का दोषी होगा। यह दुष्कर्म के अपराध की श्रेणी में नहीं आएगा।’
यह दंडनीय अपराध है और इसके लिए पांच साल की कैद या जुर्माना या दोनों की सजा का प्रावधान है। शीर्ष अदालत ने इस प्रावधान को निरस्त करते हुए कहा था कि धारा 497 मनमानी और पुरातन कानून है जिससे महिलाओं के समता और समान अवसरों के अधिकारों का हनन होता है।
पीठ ने इसके साथ ही स्थिति स्पष्ट करने के बारे में पांच सदस्यीय संविधान पीठ गठित करने के लिए यह मामला प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे के पास भेज दिया। व्यभिचार के मुद्दे पर साल 2018 में तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने अपने फैसले में इससे संबंधित भारतीय दंड संहिता के प्रावधान को असंवैधानिक घोषित कर दिया था।
संविधान पीठ ने कहा था कि यह प्रावधान महिलाओं की व्यैक्तिक स्थिति पर चोट पहुंचाता है क्योंकि यह उन्हें ‘पतियों की जागीर’ के रूप में मानता है। हालांकि, न्यायालय ने स्पष्ट किया था कि वैवाहिक विवादों में तलाक के लिए व्यभिचार एक आधार बना रहेगा। केंद्र ने जोसेफ शाइन की निस्तारित की जा चुकी याचिका में दायर अपने अंतरिम आवेदन में न्यायालय से स्पष्टीकरण देने का अनुरोध किया है।
केंद्र ने यह निर्देश देने का अनुरोध किया है कि यह फैसला सशस्त्र बलों को शासित करने वाले विशेष कानूनों और नियमों पर लागू नहीं होगा। सशस्त्र बलों में अनुशासन सुनिश्चित करने के लिए कार्मिकों के विवाहेत्तर संबंधों में शामिल होने पर कार्रवाई की जाती है। जब जवान और अधिकारी अग्रिम निर्जन इलाकों में तैनात होते हैं तो उनके परिवारों की देखभाल बेस शिविर में दूसरे अधिकारी करते हैं।
आवेदन में कहा गया है कि इन कानूनों और नियमों में अनुशासन बनाए रखने के लिये इस तरह की गतिविधि में संलिप्त होने पर कार्रवाई का प्रावधान है। इसमें कहा गया है कि सशस्त्र बल में कार्यरत कार्मिकों को अपने सहयोगी की पत्नी के साथ विवाहेत्तर संबंधों में संलिप्त होने पर असह्य आचरण के आधार पर सेवा से बर्खास्त किया जा सकता है।
भारतीय दंड संहिता की धारा 497 के अनुसार, ‘यदि कोई पुरुष यह जानते हुए भी कि महिला किसी अन्य व्यक्ति की पत्नी है और उस व्यक्ति की सहमति या मिलीभगत के बगैर ही महिला के साथ यौनाचार करता है तो वह परस्त्रीगमन के अपराध का दोषी होगा। यह दुष्कर्म के अपराध की श्रेणी में नहीं आएगा।’
यह दंडनीय अपराध है और इसके लिए पांच साल की कैद या जुर्माना या दोनों की सजा का प्रावधान है। शीर्ष अदालत ने इस प्रावधान को निरस्त करते हुए कहा था कि धारा 497 मनमानी और पुरातन कानून है जिससे महिलाओं के समता और समान अवसरों के अधिकारों का हनन होता है।
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