सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान
– फोटो : Instagram/Prince Mohammed bin Salman
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सऊदी अरब अपने वित्तीय व्यवस्था के लिए तेल पर निर्भरता को खत्म करना चाहता है। क्योंकि सरकार को पता है कि तेल हमेशा के लिए नहीं रहेगा।
इसलिए
राज्य अपनी संपत्ति और देनदारियों की एक समेकित बैलेंस शीट बनाने पर काम कर रहा है, जिसमें वर्तमान में तेल-समृद्ध अर्थव्यवस्था को खत्म किया जाएगा, जिसमें इसके शक्तिशाली स्वायत्त धन निधि के निवेश और ऋण शामिल हैं। क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान सऊदी की राजधानी रियाद को 2030 तक एक आर्थिक और व्यापारिक गढ़ बनाना चाहते हैं।
प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने दुनिया के शीर्ष तेल निर्यातक देश की अर्थव्यवस्था में विविधता लाने के उद्देश्य से सुधारों के केंद्र में सार्वजनिक निवेश कोष (पीआईएफ), सऊदी अरब के मुख्य स्वायत्त धन निधि को रखा है। सऊदी सरकार के ताजा कदम के अनुसार ऐसी कोई भी विदेशी कंपनी और वाणिज्यिक संस्था के लिए, जो सरकारी ठेका/कॉन्ट्रैक्ट हासिल करना चाहती है, उसे अपना क्षेत्रीय मुख्यालय सऊदी अरब में खोलना होगा। इसे सऊदी सरकार 2024 से लागू करने जा रही है।
अरब देशों के बारे में आम तौर पर कर्ज से जुड़ी जानकारी नहीं मिलती है। लेकिन पीआईएफ का जोखिम भरा निवेश और देश की वित्तीय स्थिति निवेशकों के लिए जरूर मुद्दा बनती है।
फिच सोवरेन टीम के किरजानिस क्रुस्टिंस कहते हैं कि पीआईएफ में सेंट्रल बैंक का निवेश जैसे मामलों में सरकारी सेक्टर के बैलेंस शीट को जोखिम में डालता है। कर्जदार निवेशक सरकार की तरफ देखते हैं और पीआईएफ जैसे मुख्य सरकारी उपक्रम इसी प्रकार के जोखिम में रहते हैं।
अरामको का निवेश
सरकार ने पिछले साल की छमाही में ही कथित सोवरेन एसेट एंड लियाबिलिटी मैनेजमेंट (SALM) फ्रेमवर्क पर काम करना शुरू कर दिया था। प्रवक्ताओं का कहना था कि ये एक लंबा चलने वाला प्रोजेक्ट है। लेकिन इसके नतीजा कब आएगा इसके बार में कभी जानकारी नहीं दी।
2015 में 150 बिलियन डॉलर के मुकाबले 2020 में इसकी कुल परिसंपत्ति 400 बिलियन डॉलर हो गई। सऊदी की सरकारी तेल कंपनी अरामको की तरफ से ही इसमें 70 बिलियन डॉलर लगाए गए। साथ ही सेंट्रल बैंक ने 40 बिलियन डॉलर का निवेश किया।
सबसे बड़ी चुनौती
सऊदी की तेल संपत्ति यहां की युवा आबादी के बीच बड़ी संख्या में रोजगार पैदा कर रही है। इसी के साथ ये चुनौती भी बन गई है। सरकार 2016 से ही लाखों नौकरियां पैदा कर रही है और 2030 तक बेरोजगारी को 7 फीसदी पर लाने की योजना है। लेकिन राजकोषीय घाटे ने निवेश पर असर डाला है। पिछले साल कोरोना वायरस के असर ने बेरोजगारी को 15.4 फीसदी पर ला दिया।
सऊदी अरब अपने वित्तीय व्यवस्था के लिए तेल पर निर्भरता को खत्म करना चाहता है। क्योंकि सरकार को पता है कि तेल हमेशा के लिए नहीं रहेगा।
इसलिए
राज्य अपनी संपत्ति और देनदारियों की एक समेकित बैलेंस शीट बनाने पर काम कर रहा है, जिसमें वर्तमान में तेल-समृद्ध अर्थव्यवस्था को खत्म किया जाएगा, जिसमें इसके शक्तिशाली स्वायत्त धन निधि के निवेश और ऋण शामिल हैं। क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान सऊदी की राजधानी रियाद को 2030 तक एक आर्थिक और व्यापारिक गढ़ बनाना चाहते हैं।
प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने दुनिया के शीर्ष तेल निर्यातक देश की अर्थव्यवस्था में विविधता लाने के उद्देश्य से सुधारों के केंद्र में सार्वजनिक निवेश कोष (पीआईएफ), सऊदी अरब के मुख्य स्वायत्त धन निधि को रखा है। सऊदी सरकार के ताजा कदम के अनुसार ऐसी कोई भी विदेशी कंपनी और वाणिज्यिक संस्था के लिए, जो सरकारी ठेका/कॉन्ट्रैक्ट हासिल करना चाहती है, उसे अपना क्षेत्रीय मुख्यालय सऊदी अरब में खोलना होगा। इसे सऊदी सरकार 2024 से लागू करने जा रही है।
अरब देशों के बारे में आम तौर पर कर्ज से जुड़ी जानकारी नहीं मिलती है। लेकिन पीआईएफ का जोखिम भरा निवेश और देश की वित्तीय स्थिति निवेशकों के लिए जरूर मुद्दा बनती है।
फिच सोवरेन टीम के किरजानिस क्रुस्टिंस कहते हैं कि पीआईएफ में सेंट्रल बैंक का निवेश जैसे मामलों में सरकारी सेक्टर के बैलेंस शीट को जोखिम में डालता है। कर्जदार निवेशक सरकार की तरफ देखते हैं और पीआईएफ जैसे मुख्य सरकारी उपक्रम इसी प्रकार के जोखिम में रहते हैं।
अरामको का निवेश
सरकार ने पिछले साल की छमाही में ही कथित सोवरेन एसेट एंड लियाबिलिटी मैनेजमेंट (SALM) फ्रेमवर्क पर काम करना शुरू कर दिया था। प्रवक्ताओं का कहना था कि ये एक लंबा चलने वाला प्रोजेक्ट है। लेकिन इसके नतीजा कब आएगा इसके बार में कभी जानकारी नहीं दी।
2015 में 150 बिलियन डॉलर के मुकाबले 2020 में इसकी कुल परिसंपत्ति 400 बिलियन डॉलर हो गई। सऊदी की सरकारी तेल कंपनी अरामको की तरफ से ही इसमें 70 बिलियन डॉलर लगाए गए। साथ ही सेंट्रल बैंक ने 40 बिलियन डॉलर का निवेश किया।
सबसे बड़ी चुनौती
सऊदी की तेल संपत्ति यहां की युवा आबादी के बीच बड़ी संख्या में रोजगार पैदा कर रही है। इसी के साथ ये चुनौती भी बन गई है। सरकार 2016 से ही लाखों नौकरियां पैदा कर रही है और 2030 तक बेरोजगारी को 7 फीसदी पर लाने की योजना है। लेकिन राजकोषीय घाटे ने निवेश पर असर डाला है। पिछले साल कोरोना वायरस के असर ने बेरोजगारी को 15.4 फीसदी पर ला दिया।
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