लालकिला हिंसा पर ट्वीट: कांग्रेस सांसद थरूर और राजदीप समेत छह पत्रकारों की गिरफ्तारी पर रोक

चीफ जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी रामसुब्रमण्यम की पीठ ने थरूर व अन्य की याचिकाओं पर कहा, हम दो हफ्ते बाद सुनवाई करेंगे। तब तक हम गिरफ्तारी से राहत दे रहे हैं।
सुनवाई के दौरान याचियों के वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल व मुकुल रोहतगी ने इन एफआईआर पर सवाल उठाते हुए गिरफ्तारी से संरक्षण प्रदान करने की गुहार लगाई। सिब्बल ने कहा, नोटिस की अवधि तक एफआईआर पर सख्त कदम से संरक्षण दिया जाए। जांच एजेंसी अभी दिल्ली में हैं। वे हमारे मुवक्किल को गिरफ्तार कर सकते हैं।
इस पर चीफ जस्टिस ने सॉलिसिटर जनरल से पूछा, क्या आप उन्हें गिरफ्तार करने जा रहे हैं। जवाब में मेहता ने कहा, हम आपके समक्ष हैं। सुनवाई बुधवार को की जाए। इस पर पीठ ने कहा, हम सिर्फ नोटिस जारी कर रहे हैं।
हालांकि, पीठ ने थरूर और अन्य द्वारा एफआईआर को रद्द करने की मांग वाली याचिकाओं पर उत्तर प्रदेश, दिल्ली, मध्यप्रदेश सहित अन्य राज्यों को नोटिस जारी किया। इन सभी के खिलाफ किसानों के प्रदर्शनों पर ट्वीट और रिपोर्टों पर कथित रूप से गलत तरीके से प्रचार करने और अशांति फैलाने का आरोप है। इन पर राजद्रोह का मुकदमा भी दर्ज किया गया है।
सॉलिसिटर जनरल बोले, इस भयावह ट्वीट का दिखा सकता हूं असर
चीफ जस्टिस ने मेहता से कहा, आप सभी के लिए पेश नहीं हो रहे हैं। आप किसी एक राज्य के लिए पेश हो रहे होंगे। मेहता ने कहा, मैं सभी के लिए पेश होऊंगा। दरअसल, सॉलिसिटर जनरल दिल्ली पुलिस के लिए पेश हुए थे।
वहीं, कारवां मैगजीन के एडिटर की ओर से पेश बरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने कहा, इस मामले में किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचाया गया है। 26 जनवरी को एक युवक पर गोली चलाने की रिपोर्ट चली, लेकिन बाद में हमने इसे सही कर लिया।
इस पर मेहता पीठ से कहा, मैं आपको इस भयावह ट्वीट का असर दिखा सकता हूं। इसके लाखों फॉलोवर्स है। कोर्ट ने नोटिस जारी करते हुए सभी प्रतिवादी राज्यों को दो हफ्ते में जवाब देने के लिए कहा है। साथ ही सभी याचिकाकर्ताओं को गिरफ्तारी से राहत दे दी।
यह है मामला
दरअसल, कोर्ट ने जिन लोगों को राहत दी, उन्होंने 26 जनवरी को ट्रैक्टर पलटने से मरे एक प्रदर्शनकारी को पुलिस की गोली लगने से मरा बताते हुए ट्वीट किया था। उपद्रव और तनाव के माहौल में बिना पुष्टि किए गलत जानकारी लोगों तक पहुंचाने को हिंसा भड़काने की कोशिश की तरह देखते हुए इन लोगों के खिलाफ यूपी, दिल्ली, मध्य प्रदेश समेत कई राज्यों में एफआईआर दर्ज की गई।
इस मामले में शशि थरूर, राजदीप सरदेसाई, मृणाल पांडे, अनंत नाथ, परेश नाथ, विनोद के जोस और जफर आगा ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। इन्होंने अपने खिलाफ दर्ज एफआईआर को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का हनन बताया था।