राकेश टिकैत को समझा कर उन्हें जाट नेता बनने से रोका, इस भूल सुधार के बाद किसान संगठनों ने लिया ये निर्णय

किसान नेता राकेश टिकैत
– फोटो : पीटीआई
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गाजीपुर से बाहर निकलने के बाद राकेश टिकैत ने हरियाणा में लगातार कई जगहों पर किसान महापंचायतें की तो यह सवाल उठने लगा कि वे खुद को जाट नेता के तौर पर आगे ले जाना चाह रहे हैं। पश्चिमी यूपी में राकेश के भाई नरेश टिकैत और चौ. अजीत सिंह के लड़के जयंत चौधरी सक्रिय हो गए। उनके मंच पर जाट नेताओं का जमावड़ा लगा रहा।किसान महापंचायतों को लेकर ऐसी चर्चा होने लगी कि ये जाट बाहुल्य इलाकों में हो रही हैं। इनमें जाट समुदाय के लोगों की ही अधिक भागेदारी है। भाजपा ने इस बात को हरियाणा और पंजाब से बाहर निकालकर दूसरे राज्यों तक पहुंचाने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी। सरदार जगमोहन सिंह कहते हैं, इससे सरकार तो खुश थी, लेकिन हमें तो किसान आंदोलन देखना था।यह आंदोलन किसी एक नेता का नहीं है। लाखों किसान दिल्ली की सीमाओं पर महीनों तक रहे हैं। केंद्र सरकार की मंशा भांपने के बाद संयुक्त किसान मोर्चे ने निर्णय लिया है कि अब हरियाणा और पंजाब में किसान महापंचायत आयोजित नहीं की जाएंगी।
राकेश टिकैत के साथ जाट समुदाय जुड़ रहा है, ये बात केंद्र सरकार अच्छी तरह समझ चुकी है। यही वजह रही कि सरकार ने केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान को जाट समुदाय के नेताओं के साथ बैठक करने के लिए कहा। मंत्री के आवास पर आयोजित बैठक में पश्चिमी यूपी के कई बड़े नेता शामिल हुए थे।हरियाणा और राजस्थान के जाट नेताओं से भी संपर्क किया जा रहा है। दूसरी तरफ किसान संगठनों ने जाट बाहुल्य इलाकों में राकेश टिकैत की महापंचायतों पर ऐतराज करना शुरु कर दिया। आम लोगों के बीच पहले ही यह दुष्प्रचार किया जा रहा था कि इस आंदोलन में शामिल सिख किसान नेता खुद को टिकैत से अलग कर रहे हैं। टिकैत ने किसान आंदोलन पर कब्जा कर लिया है। पश्चिमी यूपी में उनके भाई महापंचायतें कर रहे हैं। इन सबके मद्देनजर किसान नेताओं ने महापंचायतों को लेकर नई रणनीति का ऐलान कर दिया।
शुक्रवार को भी हमने छह लोगों की जमानत कराई है। बेगुनाह लोगों को पुलिस की ज्यादती का शिकार नहीं बनने देंगे। किसान संयुक्त मोर्चे के वरिष्ठ सदस्य हन्नान मौला ने कहा, ये बहुत लंबा चलने वाला आंदोलन है। सरकार इसे जानबूझ कर लंबा खींच रही है। उसकी मंशा किसानों की मांगें मानने की है ही नहीं, इसलिए 11 बैठकें बेनतीजा रही।देश के 240 किसान इस आंदोलन में मारे गए, मगर सरकार को उससे कोई मतलब नहीं।
दरअसल, केंद्र सरकार और भाजपा की संवेदनाएं खत्म हो गई हैं। इनकी अपनी भावनाएं मर चुकी हैं, इसलिए इन्हें किसानों की भावनाओं का ख्याल नहीं है। किसान संगठनों ने बैठक में तय किया है कि अब बड़ी रैलियां आयोजित की जाएं। इनमें सारे नेता मौजूद रहें।दिल्ली की सीमाओं पर जो किसान बैठे हैं, वे आगे भी बैठे रहेंगे। फसल कटाई या कोई दूसरा काम होता है तो कुछ अपने गांव लौट जाएंगे। उनकी जगह पर दूसरे किसान आ जाएंगे। जैसे ही लगेगा कि अब किसान के पास समय है तो मोर्चे की तरफ से दिल्ली आने का आहृवान कर दिया जाएगा।
गाजीपुर से बाहर निकलने के बाद राकेश टिकैत ने हरियाणा में लगातार कई जगहों पर किसान महापंचायतें की तो यह सवाल उठने लगा कि वे खुद को जाट नेता के तौर पर आगे ले जाना चाह रहे हैं। पश्चिमी यूपी में राकेश के भाई नरेश टिकैत और चौ. अजीत सिंह के लड़के जयंत चौधरी सक्रिय हो गए। उनके मंच पर जाट नेताओं का जमावड़ा लगा रहा।किसान महापंचायतों को लेकर ऐसी चर्चा होने लगी कि ये जाट बाहुल्य इलाकों में हो रही हैं। इनमें जाट समुदाय के लोगों की ही अधिक भागेदारी है। भाजपा ने इस बात को हरियाणा और पंजाब से बाहर निकालकर दूसरे राज्यों तक पहुंचाने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी। सरदार जगमोहन सिंह कहते हैं, इससे सरकार तो खुश थी, लेकिन हमें तो किसान आंदोलन देखना था।यह आंदोलन किसी एक नेता का नहीं है। लाखों किसान दिल्ली की सीमाओं पर महीनों तक रहे हैं। केंद्र सरकार की मंशा भांपने के बाद संयुक्त किसान मोर्चे ने निर्णय लिया है कि अब हरियाणा और पंजाब में किसान महापंचायत आयोजित नहीं की जाएंगी।
राकेश टिकैत के साथ जाट समुदाय जुड़ रहा है, ये बात केंद्र सरकार अच्छी तरह समझ चुकी है। यही वजह रही कि सरकार ने केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान को जाट समुदाय के नेताओं के साथ बैठक करने के लिए कहा। मंत्री के आवास पर आयोजित बैठक में पश्चिमी यूपी के कई बड़े नेता शामिल हुए थे।हरियाणा और राजस्थान के जाट नेताओं से भी संपर्क किया जा रहा है। दूसरी तरफ किसान संगठनों ने जाट बाहुल्य इलाकों में राकेश टिकैत की महापंचायतों पर ऐतराज करना शुरु कर दिया। आम लोगों के बीच पहले ही यह दुष्प्रचार किया जा रहा था कि इस आंदोलन में शामिल सिख किसान नेता खुद को टिकैत से अलग कर रहे हैं। टिकैत ने किसान आंदोलन पर कब्जा कर लिया है। पश्चिमी यूपी में उनके भाई महापंचायतें कर रहे हैं। इन सबके मद्देनजर किसान नेताओं ने महापंचायतों को लेकर नई रणनीति का ऐलान कर दिया।