वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, लंदन
Updated Thu, 14 Jan 2021 08:30 AM IST
कोरोना वायरस वैक्सीन
– फोटो : Coronavirus vaccine
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कोरोना वायरस के खतरे को कम करने के लिए वैक्सीन बनाने वाली बायोएनटेक कंपनी के जानकारों ने एक और वैक्सीन तैयार की है, जो दावा करती है कि वो चूहों पर मल्टी स्केलेरोसिस (एमएस) का इलाज करती है। ये नई एमएस वैक्सीन कोरोना वायरस वैक्सीन की तरह काम करती है।
mRNA की तरह ही एक जेनेटिक का पीस व्यक्ति की बाह में डाला जाता है, जो कोशिकाओं को प्रोटीन बनाने के लिए मजबूर करती है, जिससे इम्यूनिटी बढ़ती है। कोरोना वायरस के मामले में ये प्रोटीन वायरस के फैलने वाले स्पाइक की नकल करता है। यानि कि एंटीबॉडीज बनाने के लिए इम्यून सिस्टम पर जोर डालता है।
वैक्सीन लगने के बाद भी अगर व्यक्ति को कोरोना होता है तो इम्यून सिस्टम लगातार एंटीबॉडीज बनाता है और संक्रमण से लड़ता है ताकि ये और ना फैल सके। वहीं एमएस वैक्सीन के मामले में, mRNA तकनीकी मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी में न्यूरोन्स पर हमला करने से शरीर की अपनी प्रतिरक्षा प्रणाली को रोकता है जो शारीरिक संचालन के अंतिम नुकसान को रोकता है।
चूहों पर किए गए इस वैक्सीन के क्लिनिकल परीक्षण बताते हैं कि इंजेक्शन से हालत बेहतर होती है, बीमारी नहीं फैलती है और पहले नष्ट हुई कुछ मोटर स्कील को भी दोबारा स्टोर किया जाता है। बायोएनटेक की वैक्सीन का इंजेक्शन 95 फीसदी असरदार है और वो पहली mRNA आधारित वैक्सीन है जिसे मानव परीक्षण के लिए मंजरी मिली थी।
वैक्सीन सबसे पहली बार आठ दिसंबर को यूके के एक मरीज को लगाई गई थी और हजारों लोगों को लगाई जाती है। mRNA एक जेनेटिक प्रोटीन है जो मानव शरीर में प्राकृतिक तौर पर पाई जाती है। इस मानव कोशिकाओं द्वारा प्रयोग किया जाता है जो संदेश लेने और निर्देश देने काम काम करती हैं।
अमेरिका फार्मा कंपनी मॉडर्ना ने भी कोरोना वायरस वैक्सीन mRNA पर आधारित बनाई है। ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका वैक्सीन mRNA पर आधारित नहीं है और इसकी जगह पर कंपनी ऐसी तकनीकी का इस्तेमाल करती है, जो दशकों से मौजूद है और जिसे बनाने में कम लागत लगती है और कंपनी की वैक्सीन आसानी से ट्रांसपोर्ट भी की जा सकती है।
कोरोना वायरस के खतरे को कम करने के लिए वैक्सीन बनाने वाली बायोएनटेक कंपनी के जानकारों ने एक और वैक्सीन तैयार की है, जो दावा करती है कि वो चूहों पर मल्टी स्केलेरोसिस (एमएस) का इलाज करती है। ये नई एमएस वैक्सीन कोरोना वायरस वैक्सीन की तरह काम करती है।
mRNA की तरह ही एक जेनेटिक का पीस व्यक्ति की बाह में डाला जाता है, जो कोशिकाओं को प्रोटीन बनाने के लिए मजबूर करती है, जिससे इम्यूनिटी बढ़ती है। कोरोना वायरस के मामले में ये प्रोटीन वायरस के फैलने वाले स्पाइक की नकल करता है। यानि कि एंटीबॉडीज बनाने के लिए इम्यून सिस्टम पर जोर डालता है।
वैक्सीन लगने के बाद भी अगर व्यक्ति को कोरोना होता है तो इम्यून सिस्टम लगातार एंटीबॉडीज बनाता है और संक्रमण से लड़ता है ताकि ये और ना फैल सके। वहीं एमएस वैक्सीन के मामले में, mRNA तकनीकी मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी में न्यूरोन्स पर हमला करने से शरीर की अपनी प्रतिरक्षा प्रणाली को रोकता है जो शारीरिक संचालन के अंतिम नुकसान को रोकता है।
चूहों पर किए गए इस वैक्सीन के क्लिनिकल परीक्षण बताते हैं कि इंजेक्शन से हालत बेहतर होती है, बीमारी नहीं फैलती है और पहले नष्ट हुई कुछ मोटर स्कील को भी दोबारा स्टोर किया जाता है। बायोएनटेक की वैक्सीन का इंजेक्शन 95 फीसदी असरदार है और वो पहली mRNA आधारित वैक्सीन है जिसे मानव परीक्षण के लिए मंजरी मिली थी।
वैक्सीन सबसे पहली बार आठ दिसंबर को यूके के एक मरीज को लगाई गई थी और हजारों लोगों को लगाई जाती है। mRNA एक जेनेटिक प्रोटीन है जो मानव शरीर में प्राकृतिक तौर पर पाई जाती है। इस मानव कोशिकाओं द्वारा प्रयोग किया जाता है जो संदेश लेने और निर्देश देने काम काम करती हैं।
अमेरिका फार्मा कंपनी मॉडर्ना ने भी कोरोना वायरस वैक्सीन mRNA पर आधारित बनाई है। ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका वैक्सीन mRNA पर आधारित नहीं है और इसकी जगह पर कंपनी ऐसी तकनीकी का इस्तेमाल करती है, जो दशकों से मौजूद है और जिसे बनाने में कम लागत लगती है और कंपनी की वैक्सीन आसानी से ट्रांसपोर्ट भी की जा सकती है।
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