पंडित दीनदयाल उपाध्याय
– फोटो : डेमो
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पं. दीनदयाल उपाध्याय हत्याकांड में बनारस कचहरी के लालभवन में न्यायाधीश मुरलीधर ने ऐतिहासिक मुकदमे में फैसला सुनाया था। 283 पेज के फैसले में चोरी के आरोपी भरत को दोषी पाते हुए चार साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई और हत्या के आरोप से बरी कर दिया था। पंडित दीनदयाल हत्याकांड की पत्रावली इलाहाबाद हाईकोर्ट के 150वें स्थापना वर्ष पर आयोजित कार्यक्रम में प्रदर्शित करने के लिए 25 जनवरी 2016 को इलाहाबाद भेजी गई , तभी से वहीं है।
बनारस बार के पूर्व महामंत्री व वरिष्ठ अधिवक्ता नित्यानंद राय ने बताया कि दीनदयाल उपाध्याय हत्याकांड में दो अभियुक्तों के खिलाफ सीबीआई ने अदालत में आरोपपत्र दाखिल किया। पहला अभियुक्त मीरघाट का रहने वाला भारत लाल डोम था। दूसरा अभियुक्त देवरिया का राम अवध बनिया था। भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष दीनदयाल उपाध्याय की मृत्यु 10-11 फरवरी 1968 के बीच मुगलसराय स्टेशन यार्ड में हुई थी। वे पठानकोट एक्सप्रेस से लखनऊ से पटना जा रहे थे।
ट्रेन का निर्धारित आगमन मुगलसराय रेलवे स्टेशन पर रात 2:05 बजे था, लेकिन उस रात यह 2:15 बजे प्लेटफार्म नंबर एक पर आई। 2:55 बजे ट्रेन ने आगे प्रस्थान किया। दीनदयाल उपाध्याय का शव मुगलसराय यार्ड में बिजली के खंभा नंबर 1276 के करीब मिला था। उनकी पहचान सुबह 10 बजे के बाद तक नहीं हुई थी।
कैसे-कैसे बदली जांच सामान्य स्थिति में मुगलसराय पुलिस द्वारा घटना की जांच को शुरू कर दिया गया था, लेकिन अगले दिन 12 फरवरी को मामले को यूपी सीआईडी के हाथों में दे दिया गया। गृहमंत्री ने 14 फरवरी को सदन में सीबीआई जांच की घोषणा की। जांच के परिणामस्वरूप तीन मई 1968 को चार्जशीट प्रस्तुत की गई। सीबीआई ने जांच के बाद यह माना कि हत्या के पीछे कोई राजनीतिक मकसद नहीं था।
काशी से सवार हुए थे दोनों आरोपी
दोनों आरोपी भरतलाल और राम अवध बनिया ट्रेन की बोगी में काशी स्टेशन से सवार हुए थे। इस समय डिब्बे के मध्य बी केबिन में दीनदयाल उपाध्याय और एक में एमपी सिंह थे। पं. उपाध्याय ने आरोपियों को उनके प्रवेश पर आपत्ति जताई। इसके बाद दोनों को डिब्बे के एक छोर पर शौचालय के पास गलियारे में बैठने के लिए कहा। इसके बाद वे शौचालय चले गए लौटने के बाद उनकी नींद टूटी और उन्होंने आरोप लगाया कि वे चोर थे और वह उन्हें मुगलसराय में पुलिस को सौंप देंगे। मुगलसराय स्टेशन अब काफी नजदीक था।
राम अवध ने ट्रेन को रोकने के लिए चेन खींचने की कोशिश की, लेकिन सफल नहीं हुआ और इसलिए दोनों आरोपी प्लेटफार्म को देखने के लिए दरवाजे पर आ गए। दीनदयाल उपाध्याय ने दरवाजे तक उनका पीछा किया। प्लेटफार्म कितना दूर था इसकी जांच करने के लिए वह दरवाजे पर झुक गए। उस समय दोनों आरोपियों ने उन्हें चलती ट्रेन से धक्का दे दिया और वह पोल नंबर 1276 के पास जमीन पर गिर गए। ट्रेन के मुगलसराय पहुंचने के बाद अभियुक्तों ने बैग और बिस्तर सहित उनका सामान हटा दिया।
पं. दीनदयाल उपाध्याय हत्याकांड में बनारस कचहरी के लालभवन में न्यायाधीश मुरलीधर ने ऐतिहासिक मुकदमे में फैसला सुनाया था। 283 पेज के फैसले में चोरी के आरोपी भरत को दोषी पाते हुए चार साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई और हत्या के आरोप से बरी कर दिया था। पंडित दीनदयाल हत्याकांड की पत्रावली इलाहाबाद हाईकोर्ट के 150वें स्थापना वर्ष पर आयोजित कार्यक्रम में प्रदर्शित करने के लिए 25 जनवरी 2016 को इलाहाबाद भेजी गई , तभी से वहीं है।
बनारस बार के पूर्व महामंत्री व वरिष्ठ अधिवक्ता नित्यानंद राय ने बताया कि दीनदयाल उपाध्याय हत्याकांड में दो अभियुक्तों के खिलाफ सीबीआई ने अदालत में आरोपपत्र दाखिल किया। पहला अभियुक्त मीरघाट का रहने वाला भारत लाल डोम था। दूसरा अभियुक्त देवरिया का राम अवध बनिया था। भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष दीनदयाल उपाध्याय की मृत्यु 10-11 फरवरी 1968 के बीच मुगलसराय स्टेशन यार्ड में हुई थी। वे पठानकोट एक्सप्रेस से लखनऊ से पटना जा रहे थे।
ट्रेन का निर्धारित आगमन मुगलसराय रेलवे स्टेशन पर रात 2:05 बजे था, लेकिन उस रात यह 2:15 बजे प्लेटफार्म नंबर एक पर आई। 2:55 बजे ट्रेन ने आगे प्रस्थान किया। दीनदयाल उपाध्याय का शव मुगलसराय यार्ड में बिजली के खंभा नंबर 1276 के करीब मिला था। उनकी पहचान सुबह 10 बजे के बाद तक नहीं हुई थी।
कैसे-कैसे बदली जांच सामान्य स्थिति में मुगलसराय पुलिस द्वारा घटना की जांच को शुरू कर दिया गया था, लेकिन अगले दिन 12 फरवरी को मामले को यूपी सीआईडी के हाथों में दे दिया गया। गृहमंत्री ने 14 फरवरी को सदन में सीबीआई जांच की घोषणा की। जांच के परिणामस्वरूप तीन मई 1968 को चार्जशीट प्रस्तुत की गई। सीबीआई ने जांच के बाद यह माना कि हत्या के पीछे कोई राजनीतिक मकसद नहीं था।
काशी से सवार हुए थे दोनों आरोपी
दोनों आरोपी भरतलाल और राम अवध बनिया ट्रेन की बोगी में काशी स्टेशन से सवार हुए थे। इस समय डिब्बे के मध्य बी केबिन में दीनदयाल उपाध्याय और एक में एमपी सिंह थे। पं. उपाध्याय ने आरोपियों को उनके प्रवेश पर आपत्ति जताई। इसके बाद दोनों को डिब्बे के एक छोर पर शौचालय के पास गलियारे में बैठने के लिए कहा। इसके बाद वे शौचालय चले गए लौटने के बाद उनकी नींद टूटी और उन्होंने आरोप लगाया कि वे चोर थे और वह उन्हें मुगलसराय में पुलिस को सौंप देंगे। मुगलसराय स्टेशन अब काफी नजदीक था।
राम अवध ने ट्रेन को रोकने के लिए चेन खींचने की कोशिश की, लेकिन सफल नहीं हुआ और इसलिए दोनों आरोपी प्लेटफार्म को देखने के लिए दरवाजे पर आ गए। दीनदयाल उपाध्याय ने दरवाजे तक उनका पीछा किया। प्लेटफार्म कितना दूर था इसकी जांच करने के लिए वह दरवाजे पर झुक गए। उस समय दोनों आरोपियों ने उन्हें चलती ट्रेन से धक्का दे दिया और वह पोल नंबर 1276 के पास जमीन पर गिर गए। ट्रेन के मुगलसराय पहुंचने के बाद अभियुक्तों ने बैग और बिस्तर सहित उनका सामान हटा दिया।
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