नई रणनीति के लिए केंद्र सरकार को तस्वीर साफ होने का इंतजार

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गणतंत्र दिवस हिंसा के बाद किसान संगठनों के भावी रुख पर सरकार की नजर
सरकार के एक मंत्री के मुताबिक गणतंत्र दिवस की हिंसा के बाद किसान संगठनों पर दबाव पड़ा है। आंदोलन स्थल पर किसानों की संख्या में कमी आई है। किसान संगठनों में मतभेद के स्वर भी उपजे हैं। हालांकि अब भी स्थिति पूरी तरह से स्पष्ट नहीं है।
विशेष सख्ती बरतने की नहीं है कोई योजना
जाहिर है कि स्थिति साफ होने में अभी समय लगेगा। जहां तक सरकार की बात है तो हम किसी तरह की विशेष सख्ती बरतने नहीं जा रहे। निकट भविष्य में सरकार की ओर से नए सिरे से वार्ता की तैयारी भी की जा रही है। सख्ती क्यों नहीं?
दरअसल, सरकार किसी में अपनी किसान विरोधी छवि नहीं बनने देना चाहती। यही कारण है कि ट्रैक्टर रैली में हिंसा की आशंका के बावजूद पुलिस को संयम से काम लेने का निर्देश दिया गया था।
अहम तथ्य यह है कि गणतंत्र दिवस के दिन कर्नाटक के बंगलुरू, महाराष्ट्र और तेलंगाना में किसानों का बड़ा प्रदर्शन हुआ। सरकार के लिए राहत की बात यह है कि अब तक गुजरात की पटेल सहित कई दूसरे राज्यों की खेती-किसानी से जुड़ी जातियां इस आंदोलन से नहीं जुड़ी है। सख्ती के बाद आंदोलन का दायरा फैलने की संभावना है। इंतजार की रणनीति क्यों?
सरकार के रणनीतिकारों को लगता है कि गणतंत्र दिवस में हिंसा के बाद किसान आंदोलन कमजोर होगा। बुधवार को दो किसान संगठनों राष्ट्रीय मजदूर किसान संघ और भारतीय किसान यूनियन भानू ने खुद को आंदोलन से अलग कर लिया। हिंसा के सवाल पर पंजाब के कई किसान संगठनों में अंदरखाने मतभेद हैं। सरकार कोई रणनीति बनाने से पहले इस मतभेद का परिणाम सामने आने देना चाहती है।
रणनीतिकारों को लगता है कि अगर दिल्ली की सीमा पर डटे किसानों की संख्या में कमी आई तो किसान संगठन दबाव में आ जाएंगे। इसके बाद सरकार किसान संगठनों को नए सिरे से बातचीत का न्योता देगी। हिंसा मामले में एफआईआर सामान्य प्रक्त्रिस्या टैक्टर रैली के दौरान लालकिला, आईटीओ और कई जगहों पर हिंसा के मामले में कई किसान नेताओं पर एफआईआर किया है।
दरअसल, लालकिले पर धार्मिक झंडा फहराने के मामले में एक वर्ग विशेष में नाराजगी के अलावा पुलिस के खिलाफ हमला के कारण एफआईआर जरूरी था। सूत्रों ने कहा कि भले ही एफआईआर दर्ज हुई है, मगर सरकार तत्काल किसान नेताओं को गिरफ्तार करने जैसा कदम नहीं उठाएगी।
गणतंत्र दिवस हिंसा के बाद किसान संगठनों के भावी रुख पर सरकार की नजर
सरकार के एक मंत्री के मुताबिक गणतंत्र दिवस की हिंसा के बाद किसान संगठनों पर दबाव पड़ा है। आंदोलन स्थल पर किसानों की संख्या में कमी आई है। किसान संगठनों में मतभेद के स्वर भी उपजे हैं। हालांकि अब भी स्थिति पूरी तरह से स्पष्ट नहीं है।
विशेष सख्ती बरतने की नहीं है कोई योजना
जाहिर है कि स्थिति साफ होने में अभी समय लगेगा। जहां तक सरकार की बात है तो हम किसी तरह की विशेष सख्ती बरतने नहीं जा रहे। निकट भविष्य में सरकार की ओर से नए सिरे से वार्ता की तैयारी भी की जा रही है। सख्ती क्यों नहीं?
दरअसल, सरकार किसी में अपनी किसान विरोधी छवि नहीं बनने देना चाहती। यही कारण है कि ट्रैक्टर रैली में हिंसा की आशंका के बावजूद पुलिस को संयम से काम लेने का निर्देश दिया गया था।
अहम तथ्य यह है कि गणतंत्र दिवस के दिन कर्नाटक के बंगलुरू, महाराष्ट्र और तेलंगाना में किसानों का बड़ा प्रदर्शन हुआ। सरकार के लिए राहत की बात यह है कि अब तक गुजरात की पटेल सहित कई दूसरे राज्यों की खेती-किसानी से जुड़ी जातियां इस आंदोलन से नहीं जुड़ी है। सख्ती के बाद आंदोलन का दायरा फैलने की संभावना है। इंतजार की रणनीति क्यों?
सरकार के रणनीतिकारों को लगता है कि गणतंत्र दिवस में हिंसा के बाद किसान आंदोलन कमजोर होगा। बुधवार को दो किसान संगठनों राष्ट्रीय मजदूर किसान संघ और भारतीय किसान यूनियन भानू ने खुद को आंदोलन से अलग कर लिया। हिंसा के सवाल पर पंजाब के कई किसान संगठनों में अंदरखाने मतभेद हैं। सरकार कोई रणनीति बनाने से पहले इस मतभेद का परिणाम सामने आने देना चाहती है।
रणनीतिकारों को लगता है कि अगर दिल्ली की सीमा पर डटे किसानों की संख्या में कमी आई तो किसान संगठन दबाव में आ जाएंगे। इसके बाद सरकार किसान संगठनों को नए सिरे से बातचीत का न्योता देगी। हिंसा मामले में एफआईआर सामान्य प्रक्त्रिस्या टैक्टर रैली के दौरान लालकिला, आईटीओ और कई जगहों पर हिंसा के मामले में कई किसान नेताओं पर एफआईआर किया है।
दरअसल, लालकिले पर धार्मिक झंडा फहराने के मामले में एक वर्ग विशेष में नाराजगी के अलावा पुलिस के खिलाफ हमला के कारण एफआईआर जरूरी था। सूत्रों ने कहा कि भले ही एफआईआर दर्ज हुई है, मगर सरकार तत्काल किसान नेताओं को गिरफ्तार करने जैसा कदम नहीं उठाएगी।