जो बाइडन: आज दुनिया के सबसे ताकतवर मुल्क की मिलेगी कमान, ये चुनौतियां होंगी सामने

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जुनून संघर्ष और बदलाव का माद्दा उनमें उतना ही है, जितना 29 साल की उम्र में सबसे युवा सीनेटर बनने के वक्त था। वह छह बार सीनेटर चुने गए। उन्हें करीब से जानने वाले लोग बताते हैं कि उनके आज उनके इस मुकाम तक पहुंचने के पीछे कोई फलसफा और ताकत है तो वह है, उनका लोगों से गहरा जुड़ाव और संवाद में ईमानदारी।
ओबामा ने उठाया बाइडन के अनुभव का लाभ
बाइडन के वाशिंगटन की राजनीति के लंबे अनुभव का लाभ ओबामा को मिला, जिन्हें पहले कार्यकाल में ज्यादा प्रशासनिक जानकारी नहीं थी। बाइडन आर्थिक सामाजिक सुधार के लिए मुखर रहे हैं, तो खुद को मुख्यधारा का उदारवादी मानते हैं।
- ओबामा सरकार में अफोर्डेबल केयर एक्ट और 2008 में आई मंदी में आर्थिक पैकेज देने और सुधार लागू कराने में अहम भूमिका रही।
- बाइडन का मध्यमवर्ग वाली छवि के कारण ओबामा ने नौकरीपेशा तबके में अच्छी पैठ हासिल की, जिससे वह दूसरा चुनाव जीतने में कामयाब रहे।
- 2012 में संमलैंगिक विवाह का समर्थन कर अमेरिका में काफी चर्चाएं बटोरी।
बाइडन ने ओबामा के कार्यकाल के आठ वर्षों तक भारत अमेरिकी संबंधों को मजबूत करने की पैरवी की । उन्होंने दोनों देशों के बीच परमाणु समझौते के पारित होने में भी अहम भूमिका निभाई थी।
चीन के खिलाफ सख्त किया रुख
एक समय चीन के उदय को महान ताकत के रूप में देखने वाले बाइडन ने पिछले दिनों उसके खिलाफ सख्त रुख अपनाया है। इसके चलते वह अमेरिका, भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया की बहुपक्षीय साझेदारी का इस्तेमाल भारत-प्रशांत क्षेत्र में सत्ता संतुलन के लिए जारी कर सकते हैं।
पाकिस्तान पर हो सकते हैं थोड़े नरम
जानकार मानते हैं कि बाइडन पाकिस्तान को लेकर शायद आलोचनात्मक रवैया नहीं अपनाएंगे। वह अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना को बाहर निकालने के लिए इस्लामाबाद से हाथ भी मिला सकते हैं। वहीं ट्रंप ने आतंकवाद पर पाकिस्तान को सैन्य सहायता रोक दी थी।
आसान नहीं होगी आगे की राह…
बाइडन उस दौर में देश की कमान संभालने जा रहे हैं, जब दुनिया महामारी के संकट से गुजर रही है जबकि अमेरिका सामाजिक-सांस्कृतिक स्तर से लेकर कांग्रेस तक खूब बंटा हुआ है।उनके सामने बिगड़े सामाजिक ताने बाने और सरकारी संस्थानों को सुधारना बड़ी चुनौती होगी।