महापंचायत में पहुंचे सैकड़ों किसान
– फोटो : अमर उजाला
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केंद्र सरकार के नए कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर किसानों का आंदोलन जारी है। किसान संगठनों के इस प्रदर्शन को हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश की खाप पंचायतों का पूरा समर्थन हासिल है। इससे आंदोलन अब भारतीय जनता पार्टी के लिए गले की हड्डी बनता जा रहा है। पार्टी ने भीतर और बाहर बढ़ते असंतोष को रोकने के लिए मंडल समितियों का गठन कर दिया है। इसमें जाट नेता और ग्राम पंचायतों के नेता खाप सदस्यों के साथ मिलकर बीच का कोई रास्ता निकालने पर उन्हें राजी करने में जुट गए हैं।
नाम न छापने के अनुरोध पर हरियाणा से एक वरिष्ठ भाजपा सांसद ने अमर उजाला को बताया कि खाप पंचायतों के किसानों के समर्थन देने के बाद से पार्टी एक्टिव हो गई है। कई जगहों पर खापों ने भाजपा नेताओं के बहिष्कार का संकल्प लिया है। इसे देखते हुए पार्टी ने जाट नेताओं और खापों के प्रभावशाली नेताओं से मिलकर उन्हें मनाने का फैसला लिया है।
उन्होंने आगे बताया कि पार्टी ने सभी छोटे-बड़े जाट नेताओं से कहा है कि वे बिना किसी पूर्व सूचना के खाप पंचायत के नेताओं से मिलने पहुंचें। इस दौरान उनसे साथ क्षेत्र के सामाजिक नेता और गैर-राजनीतिक दलों के नेताओं को भी साथ रखें। सोनीपत, पानीपत सहित रोहतक में मुश्किल खड़ी हो सकती है इसलिए जाट नेताओं और खाप सदस्यों से संपर्क कर उन्हें मनाने के लिए सेवानिवृत्त सैन्य कर्मियों, प्रोफेसरों और क्षेत्र के प्रभावशाली लोगों की मदद लेने को लिए कहा गया है।
बागपत सदर से भाजपा विधायक योगेश धामा ने अमर उजाला से बातचीत करते हुए कहा कि खाप पंचायतों का किसान आंदोलन को समर्थन देने के बाद परेशानी जरूर खड़ी हो गई है। हम क्षेत्र में जाकर लोगों से चर्चा कर रहे हैं। खाप के सदस्यों से व्यक्तिगत कर चर्चा कर रहे हैं। लेकिन किसानों में इसे लेकर रोष है। जब हम किसानों से बात भी कर रहे हैं, तो वे कहते है कि आप ही सरकार से बात कर इसका निराकरण करवाओ। अगर सरकार बातचीत करती है तो इसका समाधान निकाला जा सकता है।
जाट सीएम न होने से भाजपा को हरियाणा में हो रहा नुकसान
किसान आंदोलन का सबसे ज्यादा असर हरियाणा में देखने मिल रहा है। हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर तक किसानों के प्रदर्शन का सामना कर चुके हैं। करीब दो वर्ष पहले ही राज्य की सत्ता पर काबिज हुई भाजपा और जजपा सरकार इस मामले में बैकफुट पर नजर आ रही है। इस आंदोलन का सीधा असर हाल ही में हुए निकाय चुनावों में भी देखने को मिला, जहां किसान आंदोलन के कारण भाजपा और जेजेपी गठबंधन को नुकसान उठाना पड़ा।
हालांकि भाजपा खेमे से इस आंदोलन को लेकर दो राय नजर आ रही है। कुछ नेताओं का मानना है कि इस आंदोलन का लंबा खिंचना अब राज्य भाजपा के लिए नया सिरदर्द बना रहा है। वहीं खाप पंचायतों के समर्थन देने के बाद से पार्टी के लिए और मुश्किल खड़ी हो गई है। जबकि कुछ नेताओं का कहना है कि राज्य में विधानसभा चुनाव फिलहाल दूर हैं, इसलिए दोनों ही पार्टियां किसानों के इस विरोध को ज्यादा तवज्जों नहीं दे रही हैं।
पार्टी के वरिष्ठ राज्यसभा सांसद ने आगे कहा, हरियाणा में गैर जाट का मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज होना भाजपा को नुकसान पहुंचा रहा है। पार्टी के पास कोई दमदार जाट नेता नहीं है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश की महापंचायतों ने बढ़ाई भाजपा की परेशानी
दिल्ली, हरियाणा और पंजाब के बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश भी इस आंदोलन की जद में आ गया है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में महापंचायतों का दौर शुरू हो गया है। सपा, बसपा और जाट लॉबी में पकड़ रखने वाली आरएलडी के आंदोलन को समर्थन देने से भाजपा की परेशानी बढ़ती हुई नजर आ रही है।
पार्टी ने सभी सांसदों और विधायकों को गांवों में पहुंचकर चौपाल लगाने के निर्देश दिए हैं, वहीं किसानों के बीच बैठक कर कृषि कानूनों पर उनकी नाराजगी दूर करने के लिए भी कहा है। भाजपा नेता किसानों को न सिर्फ नए कृषि कानून के फायदे बता रहे हैं, बल्कि यह भी समझा रहे हैं कि विरोधी दल किसानों के कंधे पर बंदूक रखकर अपना हित साध रहे हैं।
खाप पंचायतों से बढ़ती भाजपा की मुश्किलों के सवाल पर भाजपा किसान मोर्चा के अध्यक्ष और फतेहपुर सीकरी सीट से सांसद और जाट नेता राजकुमार चाहर ने अमर उजाला को बताया कि पंजाब, हरियाणा के बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जो आंदोलन चल रहा है ये केवल विपक्ष की साजिश है। कुछ दल जिनका जनाधार खत्म हो गया है वे लोगों की भावनाओं को भड़का कर इस आंदोलन को हवा दे रहे हैं। जो राजनैतिक दल कहीं नहीं दिखाई दे रहे हैं अचानक ऐसा क्या हो गया है वे इस किसान आंदोलन में शामिल हो गए हैं। वे केवल अपनी राजनीति चमका रहे हैं और किसानों को भ्रमित कर रहे हैं। किसानों में तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ कहीं कोई माहौल नहीं है। देश का किसान प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा पर भरोसा करता है।
उत्तर प्रदेश से राज्यसभा सांसद अनिल अग्रवाल ने अमर उजाला से कहा कि किसानों को लेकर हमारी पार्टी और सरकार की क्या नीति है ये प्रधानमंत्री ने राज्यसभा में अपने भाषण में बता दी है। विपक्षी लोग अपनी राजनीति के लिए ये काम कर रहे हैं। उन्हें किसानों से कोई मतलब नहीं है।
गौरतलब है कि उत्तरप्रदेश में 2022 में विधानसभा चुनाव होने हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की आबादी में जाटों की बहुतायत है। यहां की क़रीब 70 विधानसभा सीटों में उनका दबदबा है। बीते चुनाव में भाजपा ने इनमें ज्यादातर सीटें जीती थीं। पूरे राज्य में एनडीए को 41.3 फीसदी वोट मिले थे, वहीं पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 43.6 फीसदी वोट मिले थे।
सार
किसान आंदोलन का सबसे ज्यादा असर हरियाणा में देखने मिल रहा है। मुख्यमंत्री खट्टर तक किसानों के प्रदर्शन का सामना कर चुके हैं। करीब दो वर्ष पहले ही राज्य की सत्ता पर काबिज हुई भाजपा और जजपा सरकार इस मामले में बैकफुट पर नजर आ रही है…
विस्तार
केंद्र सरकार के नए कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर किसानों का आंदोलन जारी है। किसान संगठनों के इस प्रदर्शन को हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश की खाप पंचायतों का पूरा समर्थन हासिल है। इससे आंदोलन अब भारतीय जनता पार्टी के लिए गले की हड्डी बनता जा रहा है। पार्टी ने भीतर और बाहर बढ़ते असंतोष को रोकने के लिए मंडल समितियों का गठन कर दिया है। इसमें जाट नेता और ग्राम पंचायतों के नेता खाप सदस्यों के साथ मिलकर बीच का कोई रास्ता निकालने पर उन्हें राजी करने में जुट गए हैं।
नाम न छापने के अनुरोध पर हरियाणा से एक वरिष्ठ भाजपा सांसद ने अमर उजाला को बताया कि खाप पंचायतों के किसानों के समर्थन देने के बाद से पार्टी एक्टिव हो गई है। कई जगहों पर खापों ने भाजपा नेताओं के बहिष्कार का संकल्प लिया है। इसे देखते हुए पार्टी ने जाट नेताओं और खापों के प्रभावशाली नेताओं से मिलकर उन्हें मनाने का फैसला लिया है।
उन्होंने आगे बताया कि पार्टी ने सभी छोटे-बड़े जाट नेताओं से कहा है कि वे बिना किसी पूर्व सूचना के खाप पंचायत के नेताओं से मिलने पहुंचें। इस दौरान उनसे साथ क्षेत्र के सामाजिक नेता और गैर-राजनीतिक दलों के नेताओं को भी साथ रखें। सोनीपत, पानीपत सहित रोहतक में मुश्किल खड़ी हो सकती है इसलिए जाट नेताओं और खाप सदस्यों से संपर्क कर उन्हें मनाने के लिए सेवानिवृत्त सैन्य कर्मियों, प्रोफेसरों और क्षेत्र के प्रभावशाली लोगों की मदद लेने को लिए कहा गया है।
बागपत सदर से भाजपा विधायक योगेश धामा ने अमर उजाला से बातचीत करते हुए कहा कि खाप पंचायतों का किसान आंदोलन को समर्थन देने के बाद परेशानी जरूर खड़ी हो गई है। हम क्षेत्र में जाकर लोगों से चर्चा कर रहे हैं। खाप के सदस्यों से व्यक्तिगत कर चर्चा कर रहे हैं। लेकिन किसानों में इसे लेकर रोष है। जब हम किसानों से बात भी कर रहे हैं, तो वे कहते है कि आप ही सरकार से बात कर इसका निराकरण करवाओ। अगर सरकार बातचीत करती है तो इसका समाधान निकाला जा सकता है।
जाट सीएम न होने से भाजपा को हरियाणा में हो रहा नुकसान
किसान आंदोलन का सबसे ज्यादा असर हरियाणा में देखने मिल रहा है। हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर तक किसानों के प्रदर्शन का सामना कर चुके हैं। करीब दो वर्ष पहले ही राज्य की सत्ता पर काबिज हुई भाजपा और जजपा सरकार इस मामले में बैकफुट पर नजर आ रही है। इस आंदोलन का सीधा असर हाल ही में हुए निकाय चुनावों में भी देखने को मिला, जहां किसान आंदोलन के कारण भाजपा और जेजेपी गठबंधन को नुकसान उठाना पड़ा।
हालांकि भाजपा खेमे से इस आंदोलन को लेकर दो राय नजर आ रही है। कुछ नेताओं का मानना है कि इस आंदोलन का लंबा खिंचना अब राज्य भाजपा के लिए नया सिरदर्द बना रहा है। वहीं खाप पंचायतों के समर्थन देने के बाद से पार्टी के लिए और मुश्किल खड़ी हो गई है। जबकि कुछ नेताओं का कहना है कि राज्य में विधानसभा चुनाव फिलहाल दूर हैं, इसलिए दोनों ही पार्टियां किसानों के इस विरोध को ज्यादा तवज्जों नहीं दे रही हैं।
पार्टी के वरिष्ठ राज्यसभा सांसद ने आगे कहा, हरियाणा में गैर जाट का मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज होना भाजपा को नुकसान पहुंचा रहा है। पार्टी के पास कोई दमदार जाट नेता नहीं है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश की महापंचायतों ने बढ़ाई भाजपा की परेशानी
दिल्ली, हरियाणा और पंजाब के बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश भी इस आंदोलन की जद में आ गया है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में महापंचायतों का दौर शुरू हो गया है। सपा, बसपा और जाट लॉबी में पकड़ रखने वाली आरएलडी के आंदोलन को समर्थन देने से भाजपा की परेशानी बढ़ती हुई नजर आ रही है।
पार्टी ने सभी सांसदों और विधायकों को गांवों में पहुंचकर चौपाल लगाने के निर्देश दिए हैं, वहीं किसानों के बीच बैठक कर कृषि कानूनों पर उनकी नाराजगी दूर करने के लिए भी कहा है। भाजपा नेता किसानों को न सिर्फ नए कृषि कानून के फायदे बता रहे हैं, बल्कि यह भी समझा रहे हैं कि विरोधी दल किसानों के कंधे पर बंदूक रखकर अपना हित साध रहे हैं।
खाप पंचायतों से बढ़ती भाजपा की मुश्किलों के सवाल पर भाजपा किसान मोर्चा के अध्यक्ष और फतेहपुर सीकरी सीट से सांसद और जाट नेता राजकुमार चाहर ने अमर उजाला को बताया कि पंजाब, हरियाणा के बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जो आंदोलन चल रहा है ये केवल विपक्ष की साजिश है। कुछ दल जिनका जनाधार खत्म हो गया है वे लोगों की भावनाओं को भड़का कर इस आंदोलन को हवा दे रहे हैं। जो राजनैतिक दल कहीं नहीं दिखाई दे रहे हैं अचानक ऐसा क्या हो गया है वे इस किसान आंदोलन में शामिल हो गए हैं। वे केवल अपनी राजनीति चमका रहे हैं और किसानों को भ्रमित कर रहे हैं। किसानों में तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ कहीं कोई माहौल नहीं है। देश का किसान प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा पर भरोसा करता है।
उत्तर प्रदेश से राज्यसभा सांसद अनिल अग्रवाल ने अमर उजाला से कहा कि किसानों को लेकर हमारी पार्टी और सरकार की क्या नीति है ये प्रधानमंत्री ने राज्यसभा में अपने भाषण में बता दी है। विपक्षी लोग अपनी राजनीति के लिए ये काम कर रहे हैं। उन्हें किसानों से कोई मतलब नहीं है।
गौरतलब है कि उत्तरप्रदेश में 2022 में विधानसभा चुनाव होने हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की आबादी में जाटों की बहुतायत है। यहां की क़रीब 70 विधानसभा सीटों में उनका दबदबा है। बीते चुनाव में भाजपा ने इनमें ज्यादातर सीटें जीती थीं। पूरे राज्य में एनडीए को 41.3 फीसदी वोट मिले थे, वहीं पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 43.6 फीसदी वोट मिले थे।
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