खत्म होगा महापंचायतों का दौर, फिर से दिल्ली की सीमाओं पर जुटेंगे किसान, गांव-गांव जा कर दे रहे हैं धरने में आने का न्यौता

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सार
किसान महापंचायत के चलते दिल्ली की सीमाओं से भीड़ कम हो रही थी, लेकिन आगामी मार्च में शुरू होने वाले संसत्र सत्र के पहले दिल्ली की सीमाओं पर भीड़ जुटना शुरू हो जाएगी…
विस्तार
किसान नेता हन्नान मौला ने अमर उजाला को बताया कि 23 से 27 फरवरी तक किसान संगठन ‘किसान पगड़ी संभाल’ दिवस, दमन विरोधी दिवस, युवा किसान दिवस और मजदूर किसान एकता दिवस भी मनाएंगे। इसके बाद 28 फरवरी को सभी किसान संगठनों की बैठक होगी। इसमें आगे की रुपरेखा तय की जाएगी।
उन्होंने आगे बताया कि जिन भी राज्यों में किसान महापंचायत हो रही हैं उसका असर देखने को मिल रहा है। पंजाब और हरियाणा में महापंचायत हो गई है। कुछ राज्यों में अभी चल रही हैं। ये कुछ दिन ओर चलेगी। इसके बाद सभी संगठन के नेता दिल्ली एकत्र होकर आंदोलन को विस्तार देंगे।
नाम न छापने के अनुरोध पर किसान संगठन के एक नेता ने अमर उजाला से कहा कि किसान महापंचायत के चलते दिल्ली की सीमाओं से भीड़ कम हो रही थी। अधिकांश किसान महापंचायतों में ही शामिल हो रहे थे, दिल्ली नहीं आ रहे थे। भीड़ कम होने के चलते आंदोलन कमजोर पड़ता हुआ दिखाई दे रहा था। इसलिए किसान संगठन अब महापंचायतों को कुछ दिनों के लिए रोकने की सोच रहे ताकि पहले की तरफ दिल्ली की सीमाओं पर भीड़ एकत्र की जा सके और सरकार पर दवाब बनाया जा सके। आगामी मार्च में शुरू होने वाले संसत्र सत्र के पहले दिल्ली की सीमाओं पर भीड़ जुटना शुरू हो जाएगी।
युवा किसान नेता राहुल राज ने अमर उजाला से कहा कि सिंघु, टिकरी और गाजीपुर बॉर्डर पर भीड़ कम नहीं हुई है। पहले की तरफ बड़ी संख्या में लोग प्रदर्शन स्थलों पर जुट रहे है। आंदोलन को विस्तार देने के लिए अन्य राज्यों के गांवों और जिलों से किसानों को एकत्र करने की कोशिश कर रहे हैं। पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के बाद अन्य राज्यों से बड़ी संख्या में युवा किसान दिल्ली आ रहे हैं। अधिकांश किसान अपने घरों से वापस आ रहे हैं। वे थोड़े समय के लिए अपने घर जाते हैं फिर वापस आ जाते हैं। क्योंकि उन्हें अपने परिवार के साथ-साथ खेतों को भी संभालना होता है।
कृषि कानून के मसले पर किसान संगठनों और भारत सरकार के बीच कई दौर की बातचीत बेनतीजा रही है। सरकार ने किसान संगठनों से कृषि कानूनों को कुछ समय तक टालने की बात कही थी, लेकिन किसान संगठन उस पर भी राजी नहीं हुए थे। इसके बाद से ही दोनों पक्षों की तरफ से सख्त रुख अपनाया गया।