चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने अपनी अफ्रीका की यात्रा पूरी कर ली है। लेकिन इस दौरान यहां से साफ नहीं हो पाया कि अफ्रीकी देशों को कोरोना वायरस का चीनी वैक्सीन कब मिलेगा। जबकि इन देशों को उम्मीद थी कि वांग की यात्रा के दौरान इस मामले में उन्हें ठोस कार्यक्रम दिया जाएगा। अफ्रीकी देशों का चीन से खास रिश्ता रहा है।
पिछले साल कोरोना महामारी आने के बाद चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने वादा किया था कि वैक्सीन की सप्लाई में चीन अफ्रीकी देशों को प्राथमिकता देगा। उसके बाद चीन ने इन देशों को बड़े पैमाने पर मास्क, टेस्टिंग किट और मेडिकल उपकरण भेजे। चीन के धनी लोगों ने भी अफ्रीका के लिए अपनी तरफ से सहायता दी। जिन लोगों ने इसमें योगदान किया, उनमें अरबपति कारोबारी और अलीबाबा कंपनी के मालिक जैक मा भी हैं।
शी जिनपिंग की घोषणा की पश्चिमी मीडिया में यह कर आलोचना हुई थी कि चीन अब वैक्सीन डिप्लोमेसी कर रहा है। लेकिन अफ्रीकी देशों में इस एलान का स्वागत हुआ और इससे उन देशों की उम्मीद बढ़ी। जानकारों का कहना है कि चीन के पास शी का वादा निभाने के लिए पर्याप्त संसाधन हैं।
चीन में साइनोफार्म कंपनी के वैक्सीन को हरी झंडी मिल चुकी है। चार अन्य चीनी कंपनियों के टीके का परीक्षण अब तीसरे चरण में हैं। चीन में बने वैक्सीन के साथ एक खास बात यह बताई जाती है कि इन्हें रखने के लिए अत्यधिक ठंडे तापमान की जरूरत नहीं है। इससे विकासशील देशों को इन्हें भेजना आसान होगा।
इस बीच चीन ने इथियोपिया की राजधानी अदिस अबाबा तक कोल्ड चेन वैक्सीन एयर ब्रिज का निर्माण कर लिया है। इसी माध्यम से वैक्सीन अफ्रीका भेजे जाएंगे। इसके अलावा वैक्सीन निर्माण का संयंत्र मिस्र की राजधानी काहिरा में भी लगाया जा रहा है। वहां से अफ्रीकी देशों में टीकों को ले जाना और आसान हो जाएगा।
इसके बावजूद कई अफ्रीकी नेताओं ने वैक्सीन सप्लाई के चीन के वादे पर सवाल उठाना शुरू कर दिया है। अमेरिकी टीवी चैनल सीएनएन से बातचीत में लाइबेरिया के पूर्व लोक निर्माण मंत्री डब्लू ग्लाइड मूर ने कहा कि अफ्रीका से वैक्सीन का वादा फर्जी साबित हो रहा है। अब तक सिर्फ वादा किया गया है, सप्लाई का कोई टाइमटेबल नहीं बताया गया है।
मूर फिलहाल लाइबेरिया स्थित सेंटर फॉर ग्लोबल डेवलपमेंट में सीनियर फेलो हैं। सीएनएन के मुताबिक इस मामले में उसने चीन के विदेश मंत्रालय से संपर्क किया, लेकिन उसे कोई जवाब नहीं मिला। इस बीच चीनी मीडिया में इन आलोचनाओं को बेबुनियाद जरूर बताया गया है कि चीन अपना राजनीतिक प्रभाव बढ़ाने के लिए वैक्सीन का इस्तेमाल कर रहा है।
ब्रिटिश पत्रिका द इकॉनमिस्ट की इंटेलिजेंस यूनिट के एक अनुमान के मुताबिक अफ्रीकी देशों को अप्रैल 2022 तक वैक्सीन मिलने की संभावना नहीं है। विश्लेषकों ने कहा है कि अगर इसके जल्द सप्लाई की उम्मीद होती, तो वांग यी अपनी यात्रा के दौरान उसका जिक्र जरूर करते। अफ्रीका में कोरोना वायरस का संक्रमण तेजी से बढ़ रहा है। विश्लेषकों के मुताबिक इसके मद्देनजर अगर चीन ने वैक्सीन सप्लाई के बारे में जल्द स्थिति स्पष्ट नहीं की, तो अफ्रीका में उसकी डिप्लोमेसी और उसकी साख को उससे बहुत क्षति पहुंचेगी।
अफ्रीकी देशों में बेसब्री इसलिए भी बढ़ रही है, क्योंकि चीन में लाखों लोगों को कोरोना वायरस का टीका लगाया जा चुका है। जबकि अफ्रीका में सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारियों को ट्रायल के दौर में पिछले जून में टीका लगाया गया था। उस समय चीन ट्रायल के लिए दूसरे देशों पर निर्भर था, क्योंकि उसके यहां इसके लिए कोरोना संक्रमण के पर्याप्त मरीज नहीं थे।
अफ्रीका में अब इस बात को लेकर नाराजगी पैदा हो रही है कि चीन ने आरंभिक परीक्षण अफ्रीका और पश्चिम एशियाई देशों में किए। लेकिन उनमें से किसी देश को तीसरे चरण के परीक्षण के लिए नहीं चुना गया। और अब जबकि टीका तैयार हो गया है, तो अफ्रीकी देशों को यह कब मिलेगा, इस बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं दी जा रही है।