वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, टोक्यो
Updated Thu, 31 Dec 2020 04:05 PM IST
जापान के प्रधानमंत्री योशिहिदे सुगा
– फोटो : PTI (फाइल फोटो)
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जाते-जाते साल 2020 ने जापान की चिंताएं और बढ़ा दी हैं। जापान के श्रम मंत्रालय की तरफ जारी ताजा आंकड़ों के मुताबिक कोरोना महामारी के कारण देश में बेरोजगार हुए लोगों की संख्या लगभग 80 हजार तक पहुंच गई है। जिन लोगों की नौकरी इस साल गई, उनमें तकरीबन 38 हजार अनियमित कर्मचारी थे। मैनुफैक्चरिंग से लेकर फूड और ड्रिंक्स सेक्टर में काम करने वाले लोगों को इस साल रोजगार गंवाना पड़ा। इस बीच ये खबर भी आई कि देश की राजकोषीय हालत और बिगड़ गई है।
इस साल कोरोना महामारी के कारण सरकार को अपने कोष से काफी धन खर्च करना पड़ा। इसके लिए उसे कर्ज का सहारा लेना पड़ा है। इस वित्त वर्ष में जापान ने 112 खरब येन के बॉन्ड जारी किए। यह अब तक का रिकॉर्ड है। 2009 में आई मंदी के दौरान भी सरकार ने जितना कर्ज लिया था, यह उसके दो गुने के बराबर है। विशेषज्ञों का कहना है कि कोरोना महामारी के कारण सरकार का खर्च बढ़ाना जरूरी था। लेकिन अब उसे इस पर विचार करना होगा कि कर्ज की समस्या से वह कैसे निपटेगी। अगर इसका प्रभावी तरीका नहीं ढूंढा गया, तो देश की अर्थव्यवस्था के लिए उसके बहुत खराब नतीजे हो सकते हैं।
जापान की कियो यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर और वित्त विशेषज्ञ टाकेरो दोई ने यहां के अखबार जापान टाइम्स से कहा- जापान अब राजकोषीय पुनर्निर्माण के बेहद कठिन रास्ते पर पहुंच गया है। 2019 के आखिर तक ही जापान सरकार का कर्ज उसके सकल घरेलू उत्पाद के 198 फीसदी तक पहुंच गया था। अब उसमें और बड़ा इजाफा हो गया है।
विशेषज्ञों ने इस बात पर चिंता जताई है कि जापान सरकार ने अब तक कर्ज चुकाने का कोई रोडमैप तैयार नहीं किया है। उन्होंने ध्यान दिलाया कि यूरोपियन यूनियन अपने कर्ज को चुकाने के लिए टैक्स बढ़ाने पर विचार कर रहा है। इसी सिलसिले में उसने डिजिटल टैक्स का प्रस्ताव सामने रखा है। दोई ने कहा- लेकिन जापान में अभी ऐसी कोई चर्चा भी सुनाई नहीं देती। ऐसा लगता है कि स्वस्थ राजकोषीय प्रबंधन को लेकर लोगों की समझ को लकवा मार गया है।
2011 में जापान के तोहोकू इलाके में घातक भूकंप आया था। उससे हुए नुकसान की भरपाई के लिए तब की सरकार ने विशेष उपाय लागू किए। इसके तहत दो साल का विशेष कॉरपोरेट टैक्स लगाया गया। साथ ही व्यक्तियों के आयकर में भी बढ़ोतरी की गई थी, जो 2037 तक जारी रहेगी। इन उपायों से सरकार ने 10 खरब येन की अतिरिक्त रकम जुटाने का इंतजाम किया था। लेकिन इस बार ऐसी कोई चर्चा नहीं है। जबकि सरकार दो राहत पैकेज दे चुकी है। इसके तहत दोनों बार 117 खरब येन की सहायता दी गई। अब तीसरा पैकेज दिए जाने की तैयारी है। यह प्रोत्साहन पैकेज 73.6 खरब येन का होगा।
सरकार का दावा है कि वह 2025 तक देश के बजट को लाभ की स्थिति में ले आएगी। लेकिन विशेषज्ञों की राय है कि यह लक्ष्य हासिल करना अब आसान नहीं होगा। सरकारी अधिकारियों का कहना है कि जापान की कुल घरेलू संपत्ति का मूल्य अभी भी सरकार पर मौजूद कर्ज से ज्यादा है। इसलिए सरकार इस स्थिति में है कि वह बॉन्ड जारी करती रहे। फिर उसके पास अतिरिक्त नोटों की छपाई का विकल्प भी है। इसी सिद्धांत के आधार पर जापान के बैंक विदेशों में जायदाद खरीदते रहे हैं। लेकिन अनेक विशेषज्ञ ऐसी सोच को लापरवाही भरा मानते हैं। उनके मुताबिक अगर वित्तीय अनुशासन की योजना सामने नहीं आई, तो जापान गहरे आर्थिक संकट में फंस सकता है।
सार
जापान के श्रम मंत्रालय की तरफ जारी ताजा आंकड़ों के मुताबिक कोरोना महामारी के कारण देश में बेरोजगार हुए लोगों की संख्या लगभग 80 हजार तक पहुंच गई है। जिन लोगों की नौकरी इस साल गई, उनमें तकरीबन 38 हजार अनियमित कर्मचारी थे…
विस्तार
जाते-जाते साल 2020 ने जापान की चिंताएं और बढ़ा दी हैं। जापान के श्रम मंत्रालय की तरफ जारी ताजा आंकड़ों के मुताबिक कोरोना महामारी के कारण देश में बेरोजगार हुए लोगों की संख्या लगभग 80 हजार तक पहुंच गई है। जिन लोगों की नौकरी इस साल गई, उनमें तकरीबन 38 हजार अनियमित कर्मचारी थे। मैनुफैक्चरिंग से लेकर फूड और ड्रिंक्स सेक्टर में काम करने वाले लोगों को इस साल रोजगार गंवाना पड़ा। इस बीच ये खबर भी आई कि देश की राजकोषीय हालत और बिगड़ गई है।
इस साल कोरोना महामारी के कारण सरकार को अपने कोष से काफी धन खर्च करना पड़ा। इसके लिए उसे कर्ज का सहारा लेना पड़ा है। इस वित्त वर्ष में जापान ने 112 खरब येन के बॉन्ड जारी किए। यह अब तक का रिकॉर्ड है। 2009 में आई मंदी के दौरान भी सरकार ने जितना कर्ज लिया था, यह उसके दो गुने के बराबर है। विशेषज्ञों का कहना है कि कोरोना महामारी के कारण सरकार का खर्च बढ़ाना जरूरी था। लेकिन अब उसे इस पर विचार करना होगा कि कर्ज की समस्या से वह कैसे निपटेगी। अगर इसका प्रभावी तरीका नहीं ढूंढा गया, तो देश की अर्थव्यवस्था के लिए उसके बहुत खराब नतीजे हो सकते हैं।
जापान की कियो यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर और वित्त विशेषज्ञ टाकेरो दोई ने यहां के अखबार जापान टाइम्स से कहा- जापान अब राजकोषीय पुनर्निर्माण के बेहद कठिन रास्ते पर पहुंच गया है। 2019 के आखिर तक ही जापान सरकार का कर्ज उसके सकल घरेलू उत्पाद के 198 फीसदी तक पहुंच गया था। अब उसमें और बड़ा इजाफा हो गया है।
विशेषज्ञों ने इस बात पर चिंता जताई है कि जापान सरकार ने अब तक कर्ज चुकाने का कोई रोडमैप तैयार नहीं किया है। उन्होंने ध्यान दिलाया कि यूरोपियन यूनियन अपने कर्ज को चुकाने के लिए टैक्स बढ़ाने पर विचार कर रहा है। इसी सिलसिले में उसने डिजिटल टैक्स का प्रस्ताव सामने रखा है। दोई ने कहा- लेकिन जापान में अभी ऐसी कोई चर्चा भी सुनाई नहीं देती। ऐसा लगता है कि स्वस्थ राजकोषीय प्रबंधन को लेकर लोगों की समझ को लकवा मार गया है।
2011 में जापान के तोहोकू इलाके में घातक भूकंप आया था। उससे हुए नुकसान की भरपाई के लिए तब की सरकार ने विशेष उपाय लागू किए। इसके तहत दो साल का विशेष कॉरपोरेट टैक्स लगाया गया। साथ ही व्यक्तियों के आयकर में भी बढ़ोतरी की गई थी, जो 2037 तक जारी रहेगी। इन उपायों से सरकार ने 10 खरब येन की अतिरिक्त रकम जुटाने का इंतजाम किया था। लेकिन इस बार ऐसी कोई चर्चा नहीं है। जबकि सरकार दो राहत पैकेज दे चुकी है। इसके तहत दोनों बार 117 खरब येन की सहायता दी गई। अब तीसरा पैकेज दिए जाने की तैयारी है। यह प्रोत्साहन पैकेज 73.6 खरब येन का होगा।
सरकार का दावा है कि वह 2025 तक देश के बजट को लाभ की स्थिति में ले आएगी। लेकिन विशेषज्ञों की राय है कि यह लक्ष्य हासिल करना अब आसान नहीं होगा। सरकारी अधिकारियों का कहना है कि जापान की कुल घरेलू संपत्ति का मूल्य अभी भी सरकार पर मौजूद कर्ज से ज्यादा है। इसलिए सरकार इस स्थिति में है कि वह बॉन्ड जारी करती रहे। फिर उसके पास अतिरिक्त नोटों की छपाई का विकल्प भी है। इसी सिद्धांत के आधार पर जापान के बैंक विदेशों में जायदाद खरीदते रहे हैं। लेकिन अनेक विशेषज्ञ ऐसी सोच को लापरवाही भरा मानते हैं। उनके मुताबिक अगर वित्तीय अनुशासन की योजना सामने नहीं आई, तो जापान गहरे आर्थिक संकट में फंस सकता है।
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