कोरोना काल और महामारी ने खोल दी जापान की स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल

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सार
जापान में 1960 के दशक में ही यूनिवर्सल हेल्थ इंश्योरेंस सिस्टम की शुरुआत की गई थी। इसके तरह जापान के हर नागरिक का स्वास्थ्य बीमा होता है। लेकिन महामारी के समय बीमा व्यवस्था सबके काम नहीं आ सकी…
विस्तार
बहुत से देशों की तुलना में ये संख्या अभी भी कम है, इसके बावजूद जापान की स्वास्थ्य देखभाल व्यवस्था इस चुनौती का मुस्तैदी से सामना करने में नाकाम रही है। जबकि पश्चिमी देशों में जापान के हेल्थ केयर सिस्टम का बड़ा नाम रहा है। जापान में प्रति व्यक्ति अस्पताल के बिस्तरों की संख्या सभी विकसित देशों के बीच सबसे ज्यादा है। उसकी स्वास्थ्य सेवाओं की भी तारीफ होती थी। जापान के नेता अपने यहां औसत जीवन उम्र के अधिक होने का श्रेय अपनी उच्चस्तरीय और किफायती स्वास्थ्य व्यवस्था को देते थे।
लेकिन कोरोना महामारी के दौरान ये व्यवस्था अपर्याप्त साबित हुई है। कोबे यूनिवर्सिटी अस्पताल में डॉक्टर और प्रोफेसर केनातारो इवाता ने अमेरिकी टीवी चैनल सीएनएन से कहा- ‘हम हेल्थ केयर को पेयजल जितना महत्व देते हैं। लेकिन कोरोना के हजारों मरीजों को घर पर रहना पड़ा, क्योंकि उन्हें अस्पताल में बिस्तर उपलब्ध नहीं हो सका। बहुत से लोग डॉक्टर को दिखा भी नहीं पाए। यह कड़वी सच्चाई है, जिसे स्वीकार करना बहुत से जापानियों के लिए मुश्किल हो रहा है।’
जापान में 1960 के दशक में ही यूनिवर्सल हेल्थ इंश्योरेंस सिस्टम की शुरुआत की गई थी। इसके तरह जापान के हर नागरिक का स्वास्थ्य बीमा होता है। लेकिन महामारी के समय बीमा व्यवस्था सबके काम नहीं आ सकी। सीएनएन की रिपोर्ट के मुताबिक चार फरवरी को देश में 8,700 से अधिक कोरोना मरीज अस्पताल या आइसोलेशन सेंटर में बिस्तर पाने की कतार में थे। उसके एक हफ्ता पहले 18 हजार से अधिक मरीज बिस्तर की प्रतीक्षा में थे। विशेषज्ञों ने कहा है कि इसका मतलब यह हुआ कि बहुत से लोगों की जान अपने घर में रहते हुए जा रही थी और ऐसे लोग अपने परिजनों में संक्रमण फैला भी रहे थे।
इसके पहले पिछले साल मध्य में जब कोरोना महामारी का पहला दौर आया था, तब ऐसी समस्या जापान में नहीं देखी गई थी। तब सबको अस्पतालों में जगह मिल गई थी। महामारी के दूसरे दौर में अस्पतालों में जगह की कमी को देखते हुए सरकार ने नियम में बदलाव किया। उसने कहा कि सबको अस्पताल में भर्ती करने की जरूरत नहीं है। अस्पतालों में जगह सिर्फ गंभीर स्थिति वाले मरीजों को देने का नियम लागू किया गया।
जापान में 2019 में हर एक हजार नागरिक पर अस्पताल के 13 बेड उपलब्ध थे। जबकि अमेरिका और ब्रिटेन में यह अनुपात सिर्फ तीन है। विकसित देशों के संगठन ओईसीडी के तहत आने वाले देशों में यह अनुपात प्रति एक हजार व्यक्ति 4.7 है। लेकिन प्रो. इवाता का कहना है कि ये संख्या गुमराह करने वाली है। जापान में ज्यादातर बिस्तर हल्की बीमारियों के मरीजों के लिए हैं। अगर आईसीयू बेड के लिहाज से देखें तो जापान में हर एक लाख व्यक्ति पर सिर्फ पांच ऐसे बेड हैं। जबकि जर्मनी में ये संख्या 34 और अमेरिका में 26 है।
जापान में विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी एक दूसरी समस्या है। देश के कुल 8,300 अस्पतालों में संक्रामक रोगों के सिर्फ 1,631 विशेषज्ञ हैं। इसका अर्थ हुआ कि ज्यादातर अस्पतालों में ऐसा कोई विशेषज्ञ मौजूद नहीं है। दिसंबर में जापान की समाचार एजेंसी क्योदो के एक सर्व से सामने आया था कि ज्यादातर अस्पतालों में गंभीर बीमारियों के इलाज के लिए डॉक्टरों और नर्सों की कमी है। इसलिए जानकारों को इसमें कोई हैरत नहीं है कि धनी देश होने के बावजूद जापान कोरोना महामारी को उस तरह नहीं संभाल पाया, जैसे चीन, वियतनाम, दक्षिण कोरिया और ताइवान ने संभाला है।