गाजीपुर बॉर्डर पर बैठे किसान
– फोटो : Amar Ujala (File)
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किसान आंदोलन को लेकर लोग तरह-तरह की बातें कर रहे हैं। कोई कह रहा है कि सरकार अब आंदोलन को खत्म कर देगी। दूसरी तरफ से सुनने को मिलता है कि टिकैत तो सरकार का ही आदमी है। दरअसल, यह संकेत है कि सरकार आंदोलन को लेकर भारी दबाव में है और किसान अब दो साल तक भी पीछे नहीं हटने वाले हैं। ऑल इंडिया किसान खेत मजदूर संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष सत्यवान, जो कि शुरुआत से ही किसान आंदोलन में प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं, ने यह बात कही है।
किसान नेता का दावा है कि सरकार चाहे जो कर ले, लेकिन ये आंदोलन नहीं टूटेगा। हमें यह बात स्वीकार करने में कोई गुरेज नहीं कि किसान संगठनों की स्थिति ‘दाना और भूसे’ वाली है। दाना भी है और भूसा भी है, इसका मतलब आप समझ सकते हैं। इसके बावजूद यह गारंटी है कि ये आंदोलन आगे बढ़ता जाएगा। बातचीत में सरकार के प्रतिनिधि इतना तक नहीं बता सके कि ये कानून लाने में इतनी जल्दबाजी क्यों की गई। तीन कानूनों के ‘स्टेटमेंट ऑफ ऑब्जेक्शन एंड रीजन’ को लेकर सरकार चुप रही। केवल यही कहा कि कोविड के चलते चर्चा नहीं कर सके।
किसान मजदूर नेता सत्यवान बताते हैं कि इन तीन कृषि कानूनों को लेकर केंद्र सरकार आंदोलन के पहले ही दिन से टालमटोल की नीति पर चल रही है। किसानों में जानबूझ कर निराशा का भाव पैदा किया गया। बातचीत के प्रत्येक दौर से पहले लोग यह उम्मीद करते थे कि इस दफा कुछ बात बन जाएगी। हैरानी की बात तो ये थी कि सरकार के नुमाइंदे हर बैठक में ‘काला मन’ लेकर आते थे। नतीजा, तारीख पर तारीख मिलती चली गई।
मंत्रियों से पूछा जाता कि इन कानूनों में खास बात क्या है, इसका जवाब नहीं मिला। क्या ये कानून कॉर्पोरेट के पक्ष में हैं तो उस पर सरकार मौन थी। संशोधन की बात सामने आई तो वहां सरकार का यह होमवर्क पूरा नहीं था कि कौन से संशोधन करेंगे। क्लॉज वाइज चर्चा करने की बात कही तो उससे सरकार मुकर गई। कानूनों को वापस करने की बात कही तो केंद्र सरकार अड़ गई।
सत्यवान का कहना है कि केंद्र सरकार ने आंदोलन को तोड़ने का हर तरीका आजमा कर देख लिया। सरकार अब झुंझला उठी है। प्रधानमंत्री के सदन में बयान देने से लेकर भाजपा के वरिष्ठ मंत्रियों और नेताओं के बयान पर गौर करें तो समझ आता है कि अब सरकार भय की स्थिति में है। हालांकि वह झुकने के लिए तैयार नहीं है। संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले आंदोलन मजबूती से आगे बढ़ता रहेगा।
अक्तूबर तक नहीं, अब हम दो साल तक आंदोलन को ले जाने की प्लानिंग कर रहे हैं। राकेश टिकैत जो मर्जी कहें, किसी को मंच पर लाएं, लेकिन वह आंदोलन की आत्मा को नहीं मरने देंगे। पंजाब में किसान महापंचायत की शुरुआत हो गई है। गणतंत्र दिवस के बाद कुछ युवा साथियों ने टिकैत के ‘हम प्रधानमंत्री के मान सम्मान को आंच नहीं आने देंगे’, इस बयान पर एतराज जताया था। उसके बाद कुछ किसान साथी चले भी गए। उन्हें लगा था कि आंदोलन खत्म हो गया है।
किसान संगठनों में ‘हम पंछी इक डाल के’ यह बात तो अभी तक नहीं है। आपस में चलती रहती है। अच्छी बात ये है कि आंदोलन कमजोर नहीं हो रहा। अभी रेल रोकने की रणनीति बनी है। अगले सप्ताह तक और नई रणनीति का खुलासा कर दिया जाएगा। चाहे जब कभी, लेकिन सरकार को ही पीछे हटकर ये तीनों कानून वापस लेने होंगे।
सार
किसान नेता का दावा है, बातचीत में सरकार के प्रतिनिधि इतना तक नहीं बता सके कि ये कानून लाने में इतनी जल्दबाजी क्यों की गई। तीन कानूनों के ‘स्टेटमेंट ऑफ ऑब्जेक्शन एंड रीजन’ को लेकर सरकार चुप रही। केवल यही कहा कि कोविड के चलते चर्चा नहीं कर सके…
विस्तार
किसान आंदोलन को लेकर लोग तरह-तरह की बातें कर रहे हैं। कोई कह रहा है कि सरकार अब आंदोलन को खत्म कर देगी। दूसरी तरफ से सुनने को मिलता है कि टिकैत तो सरकार का ही आदमी है। दरअसल, यह संकेत है कि सरकार आंदोलन को लेकर भारी दबाव में है और किसान अब दो साल तक भी पीछे नहीं हटने वाले हैं। ऑल इंडिया किसान खेत मजदूर संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष सत्यवान, जो कि शुरुआत से ही किसान आंदोलन में प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं, ने यह बात कही है।
किसान नेता का दावा है कि सरकार चाहे जो कर ले, लेकिन ये आंदोलन नहीं टूटेगा। हमें यह बात स्वीकार करने में कोई गुरेज नहीं कि किसान संगठनों की स्थिति ‘दाना और भूसे’ वाली है। दाना भी है और भूसा भी है, इसका मतलब आप समझ सकते हैं। इसके बावजूद यह गारंटी है कि ये आंदोलन आगे बढ़ता जाएगा। बातचीत में सरकार के प्रतिनिधि इतना तक नहीं बता सके कि ये कानून लाने में इतनी जल्दबाजी क्यों की गई। तीन कानूनों के ‘स्टेटमेंट ऑफ ऑब्जेक्शन एंड रीजन’ को लेकर सरकार चुप रही। केवल यही कहा कि कोविड के चलते चर्चा नहीं कर सके।
किसान मजदूर नेता सत्यवान बताते हैं कि इन तीन कृषि कानूनों को लेकर केंद्र सरकार आंदोलन के पहले ही दिन से टालमटोल की नीति पर चल रही है। किसानों में जानबूझ कर निराशा का भाव पैदा किया गया। बातचीत के प्रत्येक दौर से पहले लोग यह उम्मीद करते थे कि इस दफा कुछ बात बन जाएगी। हैरानी की बात तो ये थी कि सरकार के नुमाइंदे हर बैठक में ‘काला मन’ लेकर आते थे। नतीजा, तारीख पर तारीख मिलती चली गई।
मंत्रियों से पूछा जाता कि इन कानूनों में खास बात क्या है, इसका जवाब नहीं मिला। क्या ये कानून कॉर्पोरेट के पक्ष में हैं तो उस पर सरकार मौन थी। संशोधन की बात सामने आई तो वहां सरकार का यह होमवर्क पूरा नहीं था कि कौन से संशोधन करेंगे। क्लॉज वाइज चर्चा करने की बात कही तो उससे सरकार मुकर गई। कानूनों को वापस करने की बात कही तो केंद्र सरकार अड़ गई।
सत्यवान का कहना है कि केंद्र सरकार ने आंदोलन को तोड़ने का हर तरीका आजमा कर देख लिया। सरकार अब झुंझला उठी है। प्रधानमंत्री के सदन में बयान देने से लेकर भाजपा के वरिष्ठ मंत्रियों और नेताओं के बयान पर गौर करें तो समझ आता है कि अब सरकार भय की स्थिति में है। हालांकि वह झुकने के लिए तैयार नहीं है। संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले आंदोलन मजबूती से आगे बढ़ता रहेगा।
अक्तूबर तक नहीं, अब हम दो साल तक आंदोलन को ले जाने की प्लानिंग कर रहे हैं। राकेश टिकैत जो मर्जी कहें, किसी को मंच पर लाएं, लेकिन वह आंदोलन की आत्मा को नहीं मरने देंगे। पंजाब में किसान महापंचायत की शुरुआत हो गई है। गणतंत्र दिवस के बाद कुछ युवा साथियों ने टिकैत के ‘हम प्रधानमंत्री के मान सम्मान को आंच नहीं आने देंगे’, इस बयान पर एतराज जताया था। उसके बाद कुछ किसान साथी चले भी गए। उन्हें लगा था कि आंदोलन खत्म हो गया है।
किसान संगठनों में ‘हम पंछी इक डाल के’ यह बात तो अभी तक नहीं है। आपस में चलती रहती है। अच्छी बात ये है कि आंदोलन कमजोर नहीं हो रहा। अभी रेल रोकने की रणनीति बनी है। अगले सप्ताह तक और नई रणनीति का खुलासा कर दिया जाएगा। चाहे जब कभी, लेकिन सरकार को ही पीछे हटकर ये तीनों कानून वापस लेने होंगे।
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