किसान नेताओं को अंदेशा, 15 जनवरी को होने वाली बैठक से पहले सरकार कर सकती है बड़ा उलटफेर!

ऐसे राज्यों को केंद्र सरकार किसान आंदोलन की कमजोरी तो खुद के लिए फायदेमंद मान रही है। कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, हरियाणा, पंजाब और पश्चिमी यूपी के छोटे किसान संगठनों के साथ दोबारा से बातचीत करने की तैयारी में हैं। क्रांतिकारी किसान यूनियन के नेता दर्शन पाल भी मानते हैं कि सरकार ने वार्ता के लिए बहुत सोच-विचारकर 15 जनवरी की तारीख तय की है।
बतौर दर्शनपाल, इस सप्ताह आंदोलन को बदनाम करने के लिए सभी हथकंडे अपनाए जा सकते हैं। किसान संगठनों ने सरकार की इस मंशा को भांप कर ही देश के सभी जिलों में आंदोलन की गतिविधियां शुरू करने की बात कही है। ट्रैक्टर परेड, पहले दिल्ली के लिए तय हुई थी, मगर अब सभी राज्यों में जिला स्तर पर ट्रैक्टर परेड निकाली जाएगी।
किसान नेता बलदेव सिंह सिरसा के मुताबिक, जब यह आंदोलन शुरू हुआ था तो सरकार की ओर से इसे बदनाम करने का हर संभव प्रयास किया गया। सरकार का मकसद था कि आम जनमानस की नजर में यह आंदोलन बदनाम हो जाए। आप देख रहे हैं कि ऐसा नहीं हुआ। दिल्ली में और इसके चारों तरफ के राज्यों में रहने वाले लोगों को दिक्कतें हो रही हैं, लेकिन उन्होंने आंदोलन को लेकर कभी अपना गुस्सा जाहिर नहीं किया। जिससे जैसी मदद हुई, उसने दे दी। लोगों ने इसलिए मदद की है, क्योंकि आंदोलन के किसी एक कार्यकर्ता ने भी कुछ ऐसा नहीं किया, जिससे किसान संगठनों को सिर नीचे झुकाना पड़े। अब हम देख रहे हैं कि सरकार दूसरे हथकंडे अपना रही है।
बलदेव सिंह सिरसा बताते हैं, भाजपा का प्रचार तंत्र आंदोलन को बदनाम करने के लिए हर तरीका अपना रहा है। अब दोबारा से खालिस्तान का मुद्दा उछाल रहे हैं। कहीं पोस्टर लगा दिए जाते हैं। जिन्हें खेती का कुछ नहीं पता या थोड़ा बहुत जानते हैं, उन्हें किसान बनाकर देश के सामने पेश किया जा रहा है। किसान तो देश के हर राज्य में है। हम अपने आंदोलन को इस सप्ताह देश के सभी जिलों तक ले जाएंगे। केंद्र सरकार इसे हमारी कमजोरी बता रही है कि यह आंदोलन तो पंजाब, उत्तर प्रदेश और हरियाणा के किसानों का है। सरकार को इस भूल का अहसास भी करा दिया जाएगा।
योगेंद्र यादव के अनुसार, सरकार तो यह बात हर जगह फैला रही है कि ये तीन राज्यों के किसानों का आंदोलन है। यह बात कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर भी दोहरा चुके हैं कि हमें देश के उन किसानों से बात करने के लिए समय चाहिए जो कृषि बिलों का समर्थन करते हैं। वे इस आंदोलन का हिस्सा भी नहीं हैं। यादव कहते हैं कि किसान संगठन, सरकार की इस ओछी चाल को समझते हैं, इसलिए हमने सभी जिलों में आंदोलन शुरू करने की रणनीति बनाई है। जैसे 13 जनवरी को बिलों की प्रति जलाई जाएगी। 18 जनवरी को महिला किसान दिवस मनाएंगे और उसके बाद 26 जनवरी को किसान ट्रैक्टर परेड निकलेगी।
वह कहते हैं सरकार ने दरअसरल किसान आंदोलन का मजाक बना दिया है। अभी तक बातचीत के जितने भी दौर हुए हैं, उनमें समय बर्बादी के अलावा किसी मुद्दे पर बात ही नहीं हुई है। 15 जनवरी को देश के सभी भागों में इस आंदोलन की बुलंद आवाज सुनाई पड़ेगी।
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