एक्सक्लूसीव: जहां 30 साल काम किया, वहीं नहीं हो रही सुनवाई

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अपनी नौकरी के दौरान इन्होंने विभाग के काम के साथ-साथ अपने अधीनस्थों का मार्गदर्शन भी किया। उन्हें काम भी सिखाया होगा। कइयों ने आज के समय तैनात कई कर्मचारियों की सर्विस बुक भरी होगी, मगर आज वे ही लोग किसी तरह की अतिरिक्त मदद तो दूर उनका हक पाने में भी मदद नहीं कर रहे हैं।
गंभीर बात तो यह है कि चिकित्सा पर खर्च हुए बिलों का सीएमओ कार्यालय से परीक्षण हो चुका है। बावजूद इसके उन्हें कोई भुगतान नहीं हो सका। इस वजह से कई बुजुर्गों का इलाज तक रुक गया है। आज-कल, आज-कल कहकर महीनों से बुजुर्गों को अफसर और कर्मचारी टरका रहे हैं।
फोन करने पर फोन नहीं उठाते। टेबल पर पैरवी करने पहुंचने पर उनसे सम्मानजनक तरीके से बात तक नहीं की जा रही। मुख्यमंत्री के शहर में भी कई सेवानिवृत्त कर्मचारी चिकित्सा प्रतिपूर्ति की रकम के लिए कोरोना संक्रमण काल में दौड़ लगा रहे हैं।
सिंचाई विभाग गोरखपुर मंडल से कार्यालय अधीक्षक के पद से 31 जनवरी 1995 को सेवानिवृत्त हुए गिरीश नारायण श्रीवास्तव हृदय रोग के मरीज हैं। पांच मई 2020 को उन्हें पेस मेकर लगा। ऑपरेशन से पहले ही बीमारी पर हर माह बड़ी रकम खर्च होती है। 17 फरवरी 2020 को गिरीश नारायण ने चिकित्सा प्रतिपूर्ति के लिए 9150 और 10762 रुपये के बिल के साथ विभाग में आवेदन किया।
सात महीने बाद 19 सितंबर 2020 को दोनों बिल परीक्षण के लिए गोरखपुर जिला अस्पताल के सीएमएस कार्यालय भेजे गए। परीक्षण के बाद नौ दिन में फाइल दोबारा विभाग में आ र्गइं, मगर भुगतान नहीं हुआ। गिरीश बताते हैं कि जनवरी 2021 में ही उनके सेवानिवृत्ति के 26 साल और उनकी उम्र 84 साल हो जाएगी। इस दरमियान चिकित्सा प्रतिपूर्ति की रकम के लिए कभी इतना परेशान नहीं होना पड़ा। तकनीकी परीक्षण के बाद भी फाइल जानबूझकर लटकाई जा रही है। कोई साफ जवाब नहीं देता।
केस दो
एक साल चार महीने बाद भी नहीं हुआ भुगतान
कुशीनगर के कलेक्ट्रेट से आपदा लिपिक पद से 31 दिसंबर 2011 को सेवानिवृत्त हुए विजय कुमार श्रीवास्तव की किडनी खराब है। डायलिसिस होती है। उन्हें ब्लड प्रेशर और शुगर भी है। इलाज में मदद मिले इसलिए 10 अगस्त 2019 को चिकित्सा प्रतिपूर्ति के लिए 68 हजार का बिल आपदा विभाग में लगाया था। 28 अगस्त 2019 को सीएमओ कार्यालय से परीक्षण होकर रिपोर्ट विभाग में आ गई, मगर भुगतान एक साल चार महीने बाद भी नहीं हुआ।
इसी तरह 53 हजार रुपये का एक बिल उन्होंने 27 फरवरी 2020 को विभाग में लगाया था। 31 मार्च 2020 को स्वास्थ्य विभाग से परीक्षण के बाद फाइल पुन: विभाग में आ गई, मगर विजय के खाते में भुगतान अभी तक नहीं आया।
भरी हुई आवाज में विजय कहते हैं कि पैसे के अभाव में चार महीने से डॉक्टर के यहां इलाज के लिए नहीं जा रहे। कहते हैं कि पैरालिसिस अटैक की वजह से एक पैर ठीक से काम नहीं करता। बिना सहारे के चल नहीं पाते। ऐसे में एक सहारा खोजकर कितने दिनों तक गोरखपुर के पादरी बाजार से कुशीनगर बिल की पैरवी के लिए जाएं।
कुशीनगर जिले के हाटा से रजिस्ट्रार कानूनगो पद से 30 जून 2013 को रिटायर हुए नरेंद्र लाल कहते हैं कि कोरोना संक्रमण के इस दौर में बाहर निकलना कितना खतरनाक है, यह बताने की जरूरत नहीं है। पडरौना के भू-लेख कार्यालय में नोडल के तौर पर तैनात बाबू उनका फोन नहीं उठाता।
इस कारण वह यह नहीं जान पा रहे हैं कि चिकित्सा प्रतिपूर्ति का भुगतान कब तक होगा? बेबसी भरी मुस्कान के बाद लंबी सांस खींचते हुए नरेंद्र कहते हैं कि यह वही लेखपाल बाबू है, जिसका कानूनगो रहते एक समय मैंने सर्विस बुक बनाई थी। नरेंद्र की पत्नी नेत्रबाला श्रीवास्तव को शुगर और थायराइड है।
वह ठीक से चल-फिर नहीं पातीं। लंबे समय से उनका इलाज चल रहा है। 35 हजार रुपये के चिकित्सा प्रतिपूर्ति के लिए नरेंद्र लाल ने 20 जनवरी 2020 को पडरौना के भूलेख कार्यालय में आवेदन किया था। एक महीने में स्वास्थ्य विभाग से परीक्षण के बाद फाइल आ गई, मगर भुगतान अभी तक नहीं हुआ।
केस चार
पहले कभी इतना नहीं दौड़ना पड़ाता था
गंडक सिंचाई कार्यालय मंडल-1 गोरखपुर से वरिष्ठ सहायक पद से सेवानिवृत्त हुए सुरेश चंद्र की पत्नी शोभा श्रीवास्तव लंबे समय से हृदय रोगी हैं। उन्हें अस्थमा और शुगर भी है। वर्ष 2012 में एम्स दिल्ली में उनके हृदय का ऑपरेशन हुआ था। तीन बीमारियों से जूझ रही शोभा के इलाज पर हर माह मोटी रकम खर्च होती है।
सुरेश कहते हैं कि चिकित्सा प्रतिपूर्ति की रकम से थोड़ी राहत मिल जाती थी, लेकिन अब वह भी समय से नहीं मिल रही है। बताया कि जुलाई 2020 में उन्होंने 33 हजार रुपये के बिल के साथ आवेदन किया था। स्वास्थ्य विभाग से परीक्षण के बाद 27 हजार रुपये की संस्तुति की गई। अक्तूबर में फाइल स्वास्थ्य विभाग से सिंचाई विभाग में आ गई, मगर अभी तक भुगतान नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि इसके पहले कभी इतना नहीं दौड़ना पड़ा जितना इस साल।
गोरखपुर राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के अध्यक्ष रूपेश कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि सेवानिवृत्त कर्मचारियों के चिकित्सा प्रतिपूर्ति बिलों के संबंध में उत्पीड़न किया जा रहा है। साल भर से अधिक पुराने मामलों में अभी तक भुगतान नहीं हुआ। सीएमओ के परीक्षण के बाद भी बिल का भुगतान लटकाया जा रहा है।
सीएमओ ही बिलों के परीक्षण की योग्यता रखते हैं। उनके स्तर से मंजूरी मिलने के बाद भुगतान क्यों रोका जा रहा यह समझ से परे है। कई बार उच्च अधिकारियों से इसकी शिकायत की गई है। हर जिले में 100 से अधिक मामले लटके हैं। जल्द ही बिलों का भुगतान नहीं हुआ तो आंदोलन करेंगे।
भुगतान न कर कर्मचारियों का उत्पीड़न किया जा रहा
उप्र कोषागार कर्मचारी संघ के प्रांतीय अपर महामंत्री अश्विनी श्रीवास्तव ने बताया कि चिकित्सा प्रतिपूर्ति के बिलों का भुगतान न कर कर्मचारियों का उत्पीड़न किया जा रहा है। कुछ अधिकारी व कर्मचारी सरकार के बेहतर प्रयासों पर पानी फेर रहे हैं। असाध्य बीमारियों के लिए मुख्यमंत्री ने पंडित दीनदयाल उपाध्याय कैशलेस इलाज की योजना को कैबिनेट से पास कराकर सेवारत व सेवानिवृत्त कर्मचारियों को तोहफा दिया था, मगर अधिकारियों ने इस योजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया। मुख्यमंत्री इसके लिए जिम्मेदार अफसरों पर कार्रवाई करें और योजना को लागू कराएं।
सार
- कुशीनगर और गोरखपुर समेत मंडल के सभी जिलों में चिकित्सा प्रतिपूर्ति की सैकड़ों फाइलें साल भर से लटकीं
- सीएमओ कार्यालय से परीक्षण के बाद भी नहीं किया जा रहा भुगतान, सैकड़ों बुजुर्ग धक्के खाने के लिए मजबूर
विस्तार
अपनी नौकरी के दौरान इन्होंने विभाग के काम के साथ-साथ अपने अधीनस्थों का मार्गदर्शन भी किया। उन्हें काम भी सिखाया होगा। कइयों ने आज के समय तैनात कई कर्मचारियों की सर्विस बुक भरी होगी, मगर आज वे ही लोग किसी तरह की अतिरिक्त मदद तो दूर उनका हक पाने में भी मदद नहीं कर रहे हैं।
गंभीर बात तो यह है कि चिकित्सा पर खर्च हुए बिलों का सीएमओ कार्यालय से परीक्षण हो चुका है। बावजूद इसके उन्हें कोई भुगतान नहीं हो सका। इस वजह से कई बुजुर्गों का इलाज तक रुक गया है। आज-कल, आज-कल कहकर महीनों से बुजुर्गों को अफसर और कर्मचारी टरका रहे हैं।
फोन करने पर फोन नहीं उठाते। टेबल पर पैरवी करने पहुंचने पर उनसे सम्मानजनक तरीके से बात तक नहीं की जा रही। मुख्यमंत्री के शहर में भी कई सेवानिवृत्त कर्मचारी चिकित्सा प्रतिपूर्ति की रकम के लिए कोरोना संक्रमण काल में दौड़ लगा रहे हैं।
केस एक
सिंचाई विभाग गोरखपुर मंडल से कार्यालय अधीक्षक के पद से 31 जनवरी 1995 को सेवानिवृत्त हुए गिरीश नारायण श्रीवास्तव हृदय रोग के मरीज हैं। पांच मई 2020 को उन्हें पेस मेकर लगा। ऑपरेशन से पहले ही बीमारी पर हर माह बड़ी रकम खर्च होती है। 17 फरवरी 2020 को गिरीश नारायण ने चिकित्सा प्रतिपूर्ति के लिए 9150 और 10762 रुपये के बिल के साथ विभाग में आवेदन किया।
सात महीने बाद 19 सितंबर 2020 को दोनों बिल परीक्षण के लिए गोरखपुर जिला अस्पताल के सीएमएस कार्यालय भेजे गए। परीक्षण के बाद नौ दिन में फाइल दोबारा विभाग में आ र्गइं, मगर भुगतान नहीं हुआ। गिरीश बताते हैं कि जनवरी 2021 में ही उनके सेवानिवृत्ति के 26 साल और उनकी उम्र 84 साल हो जाएगी। इस दरमियान चिकित्सा प्रतिपूर्ति की रकम के लिए कभी इतना परेशान नहीं होना पड़ा। तकनीकी परीक्षण के बाद भी फाइल जानबूझकर लटकाई जा रही है। कोई साफ जवाब नहीं देता।
केस दो
एक साल चार महीने बाद भी नहीं हुआ भुगतान
कुशीनगर के कलेक्ट्रेट से आपदा लिपिक पद से 31 दिसंबर 2011 को सेवानिवृत्त हुए विजय कुमार श्रीवास्तव की किडनी खराब है। डायलिसिस होती है। उन्हें ब्लड प्रेशर और शुगर भी है। इलाज में मदद मिले इसलिए 10 अगस्त 2019 को चिकित्सा प्रतिपूर्ति के लिए 68 हजार का बिल आपदा विभाग में लगाया था। 28 अगस्त 2019 को सीएमओ कार्यालय से परीक्षण होकर रिपोर्ट विभाग में आ गई, मगर भुगतान एक साल चार महीने बाद भी नहीं हुआ।
इसी तरह 53 हजार रुपये का एक बिल उन्होंने 27 फरवरी 2020 को विभाग में लगाया था। 31 मार्च 2020 को स्वास्थ्य विभाग से परीक्षण के बाद फाइल पुन: विभाग में आ गई, मगर विजय के खाते में भुगतान अभी तक नहीं आया।
भरी हुई आवाज में विजय कहते हैं कि पैसे के अभाव में चार महीने से डॉक्टर के यहां इलाज के लिए नहीं जा रहे। कहते हैं कि पैरालिसिस अटैक की वजह से एक पैर ठीक से काम नहीं करता। बिना सहारे के चल नहीं पाते। ऐसे में एक सहारा खोजकर कितने दिनों तक गोरखपुर के पादरी बाजार से कुशीनगर बिल की पैरवी के लिए जाएं।
केस तीन
कुशीनगर जिले के हाटा से रजिस्ट्रार कानूनगो पद से 30 जून 2013 को रिटायर हुए नरेंद्र लाल कहते हैं कि कोरोना संक्रमण के इस दौर में बाहर निकलना कितना खतरनाक है, यह बताने की जरूरत नहीं है। पडरौना के भू-लेख कार्यालय में नोडल के तौर पर तैनात बाबू उनका फोन नहीं उठाता।
इस कारण वह यह नहीं जान पा रहे हैं कि चिकित्सा प्रतिपूर्ति का भुगतान कब तक होगा? बेबसी भरी मुस्कान के बाद लंबी सांस खींचते हुए नरेंद्र कहते हैं कि यह वही लेखपाल बाबू है, जिसका कानूनगो रहते एक समय मैंने सर्विस बुक बनाई थी। नरेंद्र की पत्नी नेत्रबाला श्रीवास्तव को शुगर और थायराइड है।
वह ठीक से चल-फिर नहीं पातीं। लंबे समय से उनका इलाज चल रहा है। 35 हजार रुपये के चिकित्सा प्रतिपूर्ति के लिए नरेंद्र लाल ने 20 जनवरी 2020 को पडरौना के भूलेख कार्यालय में आवेदन किया था। एक महीने में स्वास्थ्य विभाग से परीक्षण के बाद फाइल आ गई, मगर भुगतान अभी तक नहीं हुआ।
केस चार
पहले कभी इतना नहीं दौड़ना पड़ाता था
गंडक सिंचाई कार्यालय मंडल-1 गोरखपुर से वरिष्ठ सहायक पद से सेवानिवृत्त हुए सुरेश चंद्र की पत्नी शोभा श्रीवास्तव लंबे समय से हृदय रोगी हैं। उन्हें अस्थमा और शुगर भी है। वर्ष 2012 में एम्स दिल्ली में उनके हृदय का ऑपरेशन हुआ था। तीन बीमारियों से जूझ रही शोभा के इलाज पर हर माह मोटी रकम खर्च होती है।
सुरेश कहते हैं कि चिकित्सा प्रतिपूर्ति की रकम से थोड़ी राहत मिल जाती थी, लेकिन अब वह भी समय से नहीं मिल रही है। बताया कि जुलाई 2020 में उन्होंने 33 हजार रुपये के बिल के साथ आवेदन किया था। स्वास्थ्य विभाग से परीक्षण के बाद 27 हजार रुपये की संस्तुति की गई। अक्तूबर में फाइल स्वास्थ्य विभाग से सिंचाई विभाग में आ गई, मगर अभी तक भुगतान नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि इसके पहले कभी इतना नहीं दौड़ना पड़ा जितना इस साल।
बिलों का भुगतान जल्द नहीं हुआ तो आंदोलन करेंगे
सीएमओ ही बिलों के परीक्षण की योग्यता रखते हैं। उनके स्तर से मंजूरी मिलने के बाद भुगतान क्यों रोका जा रहा यह समझ से परे है। कई बार उच्च अधिकारियों से इसकी शिकायत की गई है। हर जिले में 100 से अधिक मामले लटके हैं। जल्द ही बिलों का भुगतान नहीं हुआ तो आंदोलन करेंगे।
भुगतान न कर कर्मचारियों का उत्पीड़न किया जा रहा
उप्र कोषागार कर्मचारी संघ के प्रांतीय अपर महामंत्री अश्विनी श्रीवास्तव ने बताया कि चिकित्सा प्रतिपूर्ति के बिलों का भुगतान न कर कर्मचारियों का उत्पीड़न किया जा रहा है। कुछ अधिकारी व कर्मचारी सरकार के बेहतर प्रयासों पर पानी फेर रहे हैं। असाध्य बीमारियों के लिए मुख्यमंत्री ने पंडित दीनदयाल उपाध्याय कैशलेस इलाज की योजना को कैबिनेट से पास कराकर सेवारत व सेवानिवृत्त कर्मचारियों को तोहफा दिया था, मगर अधिकारियों ने इस योजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया। मुख्यमंत्री इसके लिए जिम्मेदार अफसरों पर कार्रवाई करें और योजना को लागू कराएं।
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