अमेरिकी मीडिया पर लगातार घट रहा है जनता का भरोसा, तथ्य आधारित रिपोर्टिंग की मांग कर रहे हैं लोग!

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सार
एल्डरमैन के मुताबिक ताजा सर्वे से बड़ी तस्वीर यह उभरी है कि अमेरिका में भी वैश्विक ट्रेंड के मुताबिक परंपरागत मीडिया में लोगों का भरोसा तेजी से घट रहा है…
विस्तार
बीते साल अमेरिका में हुए इस सर्वे से सामने आया है कि आज लोग तथ्यों की ज्यादा मांग कर रहे हैं, लेकिन साथ ही उनमें पत्रकारों को लेकर भरोसा घट रहा है। ये सर्वे रिपोर्ट आने के बाद कई जानकारों ने कहा है कि मीडियाकर्मियों और मीडिया घरानों को इस नतीजे को गंभीरता से लेना चाहिए। कहा गया है कि उन्हें खुद में लोगों का भरोसा बरकरार रखने के लिए अब अतिरिक्त उपाय करने होंगे।
समाजशास्त्रियों ने ध्यान दिलाया है कि किसी समाज की स्थिरता के लिए सरकार और मीडिया में लोगों का भरोसा अनिवार्य है। लेकिन अब ऐसा लगता है कि लाखों की संख्या में अमेरिकियों का इन दोनों संस्थाओं से विश्वास उठ गया है।
एल्डरमैन ट्रस्ट सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक 56 फीसदी लोगों ने इस कथन से सहमति जताई है कि पत्रकार जानबूझ कर लोगों को गुमराह कर रहे हैं। वे या तो पूरी तरह झूठ बोलते हैं या फिर चीजों को बढ़ा-चढ़ा कर पेश करते हैं। 58 फीसदी अमेरिकियों ने कहा कि ज्यादातर समाचार संगठनों को अधिक चिंता किसी विचारधारा या राजनीतिक रुख का समर्थन करने की रहती है। उनकी मुख्य चिंता समाज को सूचना देने की नहीं है।
सर्वे एजेंसी एल्डरमैन ने कहा है कि उसने अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव होने के बाद दोबारा सर्वे किया। इसमें मीडिया में यकीन के लिहाज से नतीजे पहले से भी बदतर आए। इस सर्वे के मुताबिक डेमोक्रेटिक पार्टी के 57 फीसदी समर्थकों ने कहा कि वे मीडिया में भरोसा रखते हैं, लेकिन रिपब्लिकन पार्टी के सिर्फ 18 फीसदी समर्थकों ने ऐसी राय जताई।
एल्डरमैन के मुताबिक ताजा सर्वे से बड़ी तस्वीर यह उभरी है कि अमेरिका में भी वैश्विक ट्रेंड के मुताबिक परंपरागत मीडिया में लोगों का भरोसा तेजी से घट रहा है। यानी पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मेनस्ट्रीम मीडिया के खिलाफ जो मुहिम छेड़ रखी थी, ताजा आंकड़े सिर्फ उसका ही नतीजा नहीं हैं।
अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स में एक टिप्पणी में एंथ्रोपॉलिजिस्ट हेइदी लार्सन ने कहा है कि अमेरिका में समस्या गलत सूचनाओं के प्रचार की नहीं है। यहां समस्या भरोसे की है। मीडिया विश्लेषज्ञों का कहना है कि मीडिया घराने हमेशा से विज्ञापन पर निर्भर रहे। आज विज्ञापन की ज्यादातर रकम गूगल और फेसबुक जैसे टेक प्लेटफॉर्म हड़प ले रहे हैं। ऐसे में परंपरागत मीडिया घरानों का ढांचा कमजोर हो गया है। इससे उनकी रिपोर्टिंग कमजोर हुई है और उसका असर लोगों के विश्वास पर पड़ा है।
वेबसाइट एक्सियोस.कॉम ने एक विश्लेषण में कहा है कि मीडिया में लोगों का भरोसा बहाल करना अब बहुत बड़ी चुनौती हो गया है। लेकिन अच्छी बात यह है कि अब इस समस्या पर पत्रकारों के बीच चर्चा शुरू हो गई है। वेबसाइट के मुताबिक लंदन के अखबार फाइनेंशियल टाइम्स के पूर्व संपादक लियोनेल बार्बर ने हाल में लिखा कि मीडिया संस्थान सिर्फ तथ्य आधारित रिपोर्टिंग करके ही लोगों का भरोसा दोबारा पा सकते हैं।
अखबार वॉशिंगटन पोस्ट की स्तंभकार मार्गरेट सुलिवान ने कहा है कि मीडिया का मकसद सिर्फ सच्ची सूचना देना नहीं होना चाहिए, बल्कि उसे यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि लोग उन सूचनाओं को स्वीकार करें। लेकिन विश्लेषकों का कहना है कि ये तमाम बातें कहने में जितनी आसान हैं, उन पर अमल उतना ही कठिन है। लोगों का भरोसा लंबे समय के अनुभव से घटा है। इसे बहाल करने का कोई रेडीमेड तरीका मौजूद नहीं है।