हर्ष कुमार सलारिया, अमर उजाला, चंडीगढ़
Updated Sat, 23 Jan 2021 10:20 AM IST
पंजाब में नवजात शिशुुओं की मौत के मामलों में आई कमी।
– फोटो : प्रतीकात्मक तस्वीर
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पंजाब के सरकारी अस्पतालों में नवजात शिशुओं की मौत के मामलों में कमी आई है। सेहत विभाग के आंकड़ों के अनुसार राज्य के अस्पतालों में दो साल पहले तक जहां प्रति वर्ष 8000 से ज्यादा नवजात शिशुओं की मौत हो जाती थी, वहीं अब यह आंकड़ा 3000 रह गया है।
सेहत विभाग के निदेशक गुरिंदरबीर सिंह ने बताया कि अस्पतालों में गर्भवती महिलाओं और नवजात शिशुओं की देखभाल के प्रबंधों में लगातार सुधार का नतीजा है कि राज्य में नवजात शिशुओं की मौत की संख्या को देश भर के अन्य राज्यों के मुकाबले काफी कम कर लिया गया है। राज्य में हर साल 4 लाख बच्चे जन्म लेते हैं। इनमें से मात्र 28 दिन के भीतर ही 8000 शिशुओं की मौत हो जाती थी, उसे नियंत्रित करने के अनेक कदम उठाए गए हैं।
जन्म के समय शिशुओं का वजन कम होना, मृत्यु की एक बड़ी वजह पाई गई थी, जिसे ध्यान में रखते हुए राज्य में गर्भवती महिलाओं को खानपान के प्रति जागरूक करते हुए गरीब वर्ग की गर्भवती महिलाओं के लिए राज्य सरकार ने कई योजनाएं चलाईं। इसके फलस्वरूप ऐसी मौतों पर नियंत्रण पाया जा सका है। इसके अलावा नवजात संक्रमण पर भी ध्यान दिया गया है और अस्पतालों में साफ-सफाई की व्यापक व्यवस्था की गई है।
पिछले सप्ताह हुई सेहत विभाग की आला अफसरों की समीक्षा बैठक में नवजात शिशुओं की मृत्यु संबंधी आंकड़े पेश किए गए थे। इन आंकड़ों से यह सामने आया कि सरकारी अस्पतालों में 2020 के दौरान हर महीने 240 से अधिक यानी प्रतिदिन 8 नवजात शिशुओं की मौत हुई। बैठक में इस बात पर संतोष जताया गया कि बीते वर्षों के आंकड़ों के लिहाज से राज्य में अब नवजात शिशुओं की मौत में कमी आई है। बैठक में मौजूदा मृत्यु दर को और कम करने के उपायों पर भी विचार किया गया।
बैठक के दौरान नवंबर 2020 में सरकारी अस्पतालों में हुई नवजात शिशुओं की मौत के आंकड़े पेश किए गए। इसके अनुसार नवंबर में कुल 236 शिशुओं की जान गई। इनमें सबसे ज्यादा 136 मौतें तरनतारन जिले में दर्ज हुईं, जबकि जालंधर में 26, होशियारपुर में 24 और पटियाला में 17 मौतें हुईं। मरने वाले शिशुओं में 165 शिशु 28 दिन से ज्यादा जीवित नहीं रहे।
थानों की तरह सरकारी अस्पताल जाने से डरते हैं लोग
सूबे में पुलिस की छवि लोगों के बीच बहुत अच्छी नहीं है वहीं, आम लोग भी राज्य के सरकारी अस्पतालों और प्राथमिक चिकित्सा केंद्रों में इलाज के लिए जाने से भी कतराते हैं। यह मामला सेहत विभाग के आला अफसरों की बैठक में सामने आया है।
विभाग के अफसरों का मानना है कि अस्पतालों में मरीजों की देखभाल के लिए स्टाफ के अलावा विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी, साफ-सफाई की खराब व्यवस्था, दवाओं की कमी आदि के अलावा मरीजों के प्रति मुलाजिमों का रूखा बर्ताव इसके मुख्य कारण हैं। इसे ध्यान में रखते हुए सेहत विभाग ने अब अस्पतालों और प्राथमिक चिकित्सा केंद्रों के कामकाज में व्यापक बदलाव करने और स्टाफ को पीपुल फ्रेंडली बनाने का फैसला लिया है।
पंजाब के सरकारी अस्पतालों में नवजात शिशुओं की मौत के मामलों में कमी आई है। सेहत विभाग के आंकड़ों के अनुसार राज्य के अस्पतालों में दो साल पहले तक जहां प्रति वर्ष 8000 से ज्यादा नवजात शिशुओं की मौत हो जाती थी, वहीं अब यह आंकड़ा 3000 रह गया है।
सेहत विभाग के निदेशक गुरिंदरबीर सिंह ने बताया कि अस्पतालों में गर्भवती महिलाओं और नवजात शिशुओं की देखभाल के प्रबंधों में लगातार सुधार का नतीजा है कि राज्य में नवजात शिशुओं की मौत की संख्या को देश भर के अन्य राज्यों के मुकाबले काफी कम कर लिया गया है। राज्य में हर साल 4 लाख बच्चे जन्म लेते हैं। इनमें से मात्र 28 दिन के भीतर ही 8000 शिशुओं की मौत हो जाती थी, उसे नियंत्रित करने के अनेक कदम उठाए गए हैं।
जन्म के समय शिशुओं का वजन कम होना, मृत्यु की एक बड़ी वजह पाई गई थी, जिसे ध्यान में रखते हुए राज्य में गर्भवती महिलाओं को खानपान के प्रति जागरूक करते हुए गरीब वर्ग की गर्भवती महिलाओं के लिए राज्य सरकार ने कई योजनाएं चलाईं। इसके फलस्वरूप ऐसी मौतों पर नियंत्रण पाया जा सका है। इसके अलावा नवजात संक्रमण पर भी ध्यान दिया गया है और अस्पतालों में साफ-सफाई की व्यापक व्यवस्था की गई है।
पिछले सप्ताह हुई सेहत विभाग की आला अफसरों की समीक्षा बैठक में नवजात शिशुओं की मृत्यु संबंधी आंकड़े पेश किए गए थे। इन आंकड़ों से यह सामने आया कि सरकारी अस्पतालों में 2020 के दौरान हर महीने 240 से अधिक यानी प्रतिदिन 8 नवजात शिशुओं की मौत हुई। बैठक में इस बात पर संतोष जताया गया कि बीते वर्षों के आंकड़ों के लिहाज से राज्य में अब नवजात शिशुओं की मौत में कमी आई है। बैठक में मौजूदा मृत्यु दर को और कम करने के उपायों पर भी विचार किया गया।
बैठक के दौरान नवंबर 2020 में सरकारी अस्पतालों में हुई नवजात शिशुओं की मौत के आंकड़े पेश किए गए। इसके अनुसार नवंबर में कुल 236 शिशुओं की जान गई। इनमें सबसे ज्यादा 136 मौतें तरनतारन जिले में दर्ज हुईं, जबकि जालंधर में 26, होशियारपुर में 24 और पटियाला में 17 मौतें हुईं। मरने वाले शिशुओं में 165 शिशु 28 दिन से ज्यादा जीवित नहीं रहे।
थानों की तरह सरकारी अस्पताल जाने से डरते हैं लोग
सूबे में पुलिस की छवि लोगों के बीच बहुत अच्छी नहीं है वहीं, आम लोग भी राज्य के सरकारी अस्पतालों और प्राथमिक चिकित्सा केंद्रों में इलाज के लिए जाने से भी कतराते हैं। यह मामला सेहत विभाग के आला अफसरों की बैठक में सामने आया है।
विभाग के अफसरों का मानना है कि अस्पतालों में मरीजों की देखभाल के लिए स्टाफ के अलावा विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी, साफ-सफाई की खराब व्यवस्था, दवाओं की कमी आदि के अलावा मरीजों के प्रति मुलाजिमों का रूखा बर्ताव इसके मुख्य कारण हैं। इसे ध्यान में रखते हुए सेहत विभाग ने अब अस्पतालों और प्राथमिक चिकित्सा केंद्रों के कामकाज में व्यापक बदलाव करने और स्टाफ को पीपुल फ्रेंडली बनाने का फैसला लिया है।
कोविड संकट के समय राज्य के सरकारी अस्पतालों और उनके स्टाफ ने बेहतरीन भूमिका निभाई है। हालांकि कई स्थानों पर स्टाफ के व्यवहार को लेकर शिकायतें भी मिलीं, लेकिन अब स्टाफ की कमी को दूर करने के तेजी के प्रयास शुरू किए गए हैं। इसके तहत, विशेषज्ञ डॉक्टरों, पैरा मेडिकल स्टाफ और अन्य मुलाजिमों की भर्ती शुरू की गई है। – बलबीर सिंह सिद्धू, सेहत मंत्री, पंजाब
अस्पतालों की व्यवस्था सुधारने के लिए सभी अफसरों को निर्देश जारी किए गए हैं और उनसे इस बाबत सुझाव देने को भी कहा गया है। – गुरिंदरबीर सिंह, निदेशक, स्वास्थ्य विभाग।
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